Hindi English
Login

बुढानिलकंठ मंदिर: यहां तालाब में बसेरा करते हैं भगवान विष्णु, यूं पानी में तैरती है मूर्ति

भारत में कई ऐसे मंदिर मौजूद है जोकि लोगों के बीच काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। कुछ मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि वहां

Advertisement
Instafeed.org

By Deepakshi | ट्रेवल - 08 November 2020

भारत में कई ऐसे मंदिर मौजूद है जोकि लोगों के बीच काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। कुछ मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि वहां खुद भगवान साक्षात मौजूद है। लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि खुद भगवान विष्णु किसी एक तालाब में मौजूद है। जी हां नेपाल के काठमांडू से करीब 10 किलोमीटर की दूर पर एक मंदिर स्थित है, जोकि भगवान विष्णु का है। यहां विष्णु जी की सोती हुई मूर्ति मौजूद है। आइए जानते हैं उस मंदिर के बारे में खास बातें यहां।

- नेपाल के शिवपुरी में स्थित भगवान विष्णु के इस मंदिर को बुढानिलकंठ मंदिर के नाम से जाना जाता है। 

-  मंदिर सबसे भव्य, सुंदर और बड़ा है। इस मंदिर में विष्णु जी की सोती हुई प्रतिमा विराजित हैं।

- मंदिर में विराजमान इस मूर्ति की लंबाई लगभग 5 मीटर है और तालाब की लंबाई 13 मीटर है। ये तालाब ब्रह्मांडीय समुद्र का प्रतिनिधित्व करता है। 

- भगवान विष्णु शेष नाग की कुंडली में है विराजमन, विष्णु जी के पैर क्रॉस्ड हुए है। वहीं, बाकी के ग्यारह सिर उनके सिर से टकराते हुए दिखाई देते हैं।

- विष्णु जी के जो चार हाथ हैं जो उनके दिव्य गुण दिखाते हैं। पहला चक्र दिमाग को दर्शाता है, शंख चार तत्व, गदा प्रधान ज्ञान और कमल का फूल (चलते ब्रह्मांड) को दर्शाता है।

- मंदिर में भगवान विष्णु प्रत्यक्ष मूर्ति के रूप में वहां विराजमान है। वहीं, भगवान भोले पानी में अप्रत्यक्ष तौर पर विराजित हैं।

-ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का पानी गोसाईकुंड से उत्पन्न होने का काम करता है। 

- कुछ लोगों का ये कहना है कि हर साल अगस्त के महीने जो शिव उत्सव होता है उसमें झील के पानी के नीचे भगवान शिव को झलक देखने को मिलती है

-  पौराणिक कथा की माने तो समुद्र मंथन के वक्त समुद्र से विष निकला था तो उस वक्त दुनिया को बचाने केलिए शिव जी ने  विषको कंठ यानी गले में ले लिया।

-  विष पीने से गला नीला हो गया था। इसी के चलते भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है।

- विष पीने से जब भगवान का शिव का गला जलने लगा तो वो काठमांडू के उत्तर की सीमा की ओर चल दिए।

- उन्होंने झील बनाने के लिए त्रिशूल का इस्तेमाल किया और पहाड़ पर एक वार किया और इससे एक झील बन गई।

- झील से निकले पीने से उन्होंने अपनी प्यास बुझाई। इसीलिए कलियुग के अंदर नेपाल की झील को गोसाईकुंड कहा जाता है।

-छठी शताब्दी के उत्तर-भारतीय सम्राट विष्णुगुप्त के शासनकाल के दौरान काठमांडू में मूर्ति को अपने वर्तमान स्थान पर लाया गया था और लिच्छवी राजा भीमराजुदेव के समय काठमांडू घाटी में गया था।

- हरिबोधिनी एकादशी कार्तिक के हिंदू महीने के 11 वें दिन (अक्टूबर - नवंबर) के दौरान होती है। कई हजारों तीर्थयात्रियों द्वारा इसमें भाग लिया जाता है, यह लंबी नींद से भगवान विष्णु को जागने के उत्सव में तौर पर हर साल मनाया जाता है।

Advertisement
Advertisement
Comments

No comments available.