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संसद के दोनों सदनों — लोकसभा और राज्यसभा — में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 को पारित कर दिया गया है। यह विधेयक अब कानून बनने की प्रक्रिया में अंतिम चरण में है। हालांकि, इस बिल को लेकर देश के मुस्लिम समाज के भीतर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई मुस्लिम नेता और संगठन इस बिल को मुसलमानों के अधिकारों और धार्मिक संस्थाओं के खिलाफ बता रहे हैं, वहीं कुछ गुटों ने इसका समर्थन भी किया है।
मुंबई के इस्लामी स्कॉलर मोहम्मद सईद नूरी ने इस विधेयक को मुस्लिमों के हक में न मानते हुए कहा, “सरकार इसे मुसलमानों के लिए अच्छा बता रही है, लेकिन यह पूरी तरह इस्लाम और हमारे धार्मिक ढांचे के हक में नहीं है। सरकार की यह सोच एकतरफा है।” उन्होंने कहा कि जो लोग इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, वे मुस्लिम हितों का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे।
नूरी ने खासकर सुन्नी मुसलमानों की जिम्मेदारी की बात करते हुए कहा, “सुन्नी उलमा जो फैसला देंगे, वही इस्लाम के संदर्भ में सही माना जाएगा। अगर कोई इसका समर्थन करता है, तो वह इस्लामी दृष्टिकोण से सही नहीं है।”
कानूनी दायरे में विरोध का ऐलान
उन्होंने आगे कहा कि यह विरोध गैर-कानूनी नहीं होगा। “हम कानून के दायरे में रहकर इस विधेयक का विरोध करेंगे। मुसलमानों ने राजनीतिक पार्टियों को वोट देकर चुनकर भेजा है, और अब जब वे हमारे खिलाफ बने विधेयक का विरोध कर रहे हैं, तो वे अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।”
मुस्लिम धर्मगुरु मुहम्मद जुबैर बरकती ने दी सुप्रीम कोर्ट जाने की चेतावनी
इस बीच, मुस्लिम धर्मगुरु मुहम्मद जुबैर बरकती ने भी इस विधेयक का जोरदार विरोध किया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “यह बिल मुसलमानों के अधिकारों और धार्मिक आज़ादी पर सीधा हमला है।” साथ ही उन्होंने कहा कि वे इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
राज्यसभा में हुआ 11 घंटे का लंबा बहस
गुरुवार को विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया, जहां करीब 11 घंटे लंबी बहस चली। इस दौरान विपक्ष ने जमकर विरोध किया और सरकार पर अल्पसंख्यक विरोधी नीति अपनाने का आरोप लगाया। देर रात करीब 2:30 बजे हुई वोटिंग में 128 सांसदों ने विधेयक के पक्ष में वोट दिया, जबकि 95 सांसदों ने विरोध में।
वक्फ बोर्ड की शक्तियों में बदलाव, विवाद की जड़
इस विधेयक के जरिए वक्फ बोर्ड की कुछ शक्तियों में कटौती और सरकार के नियंत्रण में बढ़ोतरी की बात कही गई है। साथ ही, संपत्तियों के रिकॉर्ड और विवादों के समाधान से संबंधित धाराओं में भी संशोधन किया गया है। यही बदलाव मुस्लिम समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है।
अब देखना यह होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाता है, और आने वाले समय में इस विधेयक का मुस्लिम समाज पर क्या असर पड़ता है।
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