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राजस्थान में वक्फ संपत्तियों का खुलासा: जयपुर में सबसे ज्यादा दरगाहें और मजारें

वक्फ संशोधन विधेयक पास होने के बाद राजस्थान में वक्फ संपत्तियों पर चर्चा तेज हो गई है। जयपुर में सबसे ज्यादा 214 मजारें और दरगाहें दर्ज हैं, जिनमें हजारों बीघा जमीन शामिल है।

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By Shraddha Singh | Delhi, Delhi | राजनीति - 05 April 2025

राजस्थान में वक्फ संपत्तियों की हकीकत: जयपुर में सबसे अधिक दरगाहें और मजारें, जानिए पूरी लिस्ट

वक्फ (संशोधन) विधेयक के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद अब राज्यों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। राजस्थान वक्फ बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश की राजधानी जयपुर में सबसे अधिक दरगाहें, मजारें और मकबरे मौजूद हैं।

जयपुर में वक्फ संपत्तियों का ब्यौरा

जयपुर में स्थित प्रमुख वक्फ संपत्तियों में शामिल हैं:

  • दरगाह सलीम शाह जी (रेनवाल मांजीफागी) – 13,007 वर्ग फीट जमीन

  • दरगाह हज़रत कोठी वाले बाबा – 12 बिस्वा भूमि

  • दरगाह शाह जलाल शाह – 21,990.54 वर्ग फीट जमीन

  • दरगाह फतेह साहब – 3 बीघा जमीन

  • दरगाह हुजूरी शाह दुर्वेश – 5 बिस्वा जमीन

  • दरगाह पंच पीर – 20 बीघा भूमि

  • मुआफी दरगाह (तलाजामवा, रामगढ़) – 1170.4 बीघा भूमि

इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण स्थानों में:

  • दरगाह भीकम सईद (विराटनगर) – 1024 वर्ग फीट

  • दरगाह मामू भांजा (नारायण, फुलेरा) – 1168 वर्ग फीट

  • मजार सल्ले खां (किला, फुलेरा) – 1225 वर्ग फीट

  • मजार मीरां सैयद अलमशूर नीमरी वाले बाबा – 1675 वर्ग फीट

राजस्थान के जिलों में वक्फ संपत्तियों की स्थिति

राज्यभर में वक्फ बोर्ड के अधीन मजारें, मकबरे और दरगाहें निम्न प्रकार से फैली हुई हैं:

जिला मजार/दरगाह/मकबरा की संख्या
जयपुर 214
अजमेर 200
नागौर 160
अलवर 157
भीलवाड़ा 144
सवाई माधोपुर 137
चित्तौड़गढ़ 133
टोंक 127
बारां 100
बूंदी 91
उदयपुर 85
झालावाड़ 70
जोधपुर 64
राजसमंद 52
पाली 45
झुंझुनू 44
जालौर 41
सीकर 37
करौली 22
बांसवाड़ा 21
डूंगरपुर 20
दौसा 20
बीकानेर 20
सीरोही 10
बाड़मेर 10
चुरू 10
हनुमानगढ़ 1
गंगानगर 1

क्या है अगला कदम?

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को अब संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल चुकी है। लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में इसे 3 अप्रैल को वोटिंग के ज़रिए पास किया गया, जहां 128 सांसदों ने समर्थन और 95 ने विरोध किया। अब यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के इंतजार में है, जिसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा।

यह मुद्दा न सिर्फ धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील बन चुका है। आने वाले दिनों में इस पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और तेज हो सकती है।

 

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