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वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 को लेकर थलापति विजय ने खोला मोर्चा, सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत से पारित होने और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद वक्फ (संशोधन) बिल 2025 अब कानून बन गया है। लेकिन इस कानून को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में विरोध की लहर उठ चुकी है। इसी बीच साउथ के सुपरस्टार और तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) पार्टी के अध्यक्ष थलापति विजय ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
क्या है विवाद का कारण?
वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 के खिलाफ पहले से ही कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जा चुकी हैं। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का हनन करता है और भेदभाव को बढ़ावा देता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधित एक्ट वक्फ प्रॉपर्टीज पर समुदाय की स्वायत्तता को खत्म करता है और इसे सरकारी नियंत्रण में लाने की कोशिश करता है।
थलापति विजय का स्पष्ट विरोध
थलापति विजय ने इस एक्ट को पहले ही “मुस्लिम विरोधी” करार देते हुए सार्वजनिक रूप से इसकी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था:
"संसद में पारित यह विधेयक संविधान की गरिमा और धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों पर हमला है।"
उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि उनकी पार्टी TVK न केवल इस एक्ट को रद्द करने की मांग करती है, बल्कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वे मुस्लिम समुदाय के साथ मिलकर कानूनी संघर्ष में भाग लेंगे।
टीवीके का लोकतांत्रिक समर्थन
थलापति विजय ने आगे कहा:
“TVK मांग करता है कि केंद्र सरकार सभी लोकतांत्रिक ताकतों की आवाज सुने और इस तानाशाहीपूर्ण एक्ट को तुरंत वापस ले। अगर ऐसा नहीं किया गया तो TVK मुस्लिम भाइयों के साथ उनके वक्फ अधिकारों की रक्षा के लिए सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष करेगा।”
अन्य नेताओं की भी कोर्ट में चुनौती
थलापति विजय अकेले नहीं हैं। इस एक्ट को लेकर पहले ही एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी, AAP के अमानतुल्लाह खान, आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद, और सपा के जिया उर रहमान बर्क सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं। इन सभी नेताओं का आरोप है कि यह कानून धार्मिक अल्पसंख्यकों की संपत्ति पर नियंत्रण की एक कवायद है।
वक्फ बोर्ड्स की भूमिका पर भी उठे सवाल
इस नए कानून के तहत वक्फ बोर्ड्स की भूमिका और उनकी संपत्तियों पर सरकार की निगरानी बढ़ाई गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इससे वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व और प्रबंधन के अधिकार प्रभावित होंगे, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
आगे क्या?
अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाती है। क्या वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 में बदलाव होंगे? क्या इसे असंवैधानिक घोषित किया जाएगा? या फिर सरकार इसका ठोस बचाव कर पाएगी?
जो बात साफ है, वो यह कि थलापति विजय जैसे बड़े चेहरे का इस संघर्ष से जुड़ना अब इस मुद्दे को और भी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला रहा है।
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