सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को तलाक पर अहम फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर पति-पत्नी के बीच संबंध बिगड़ते हैं और विवाह जारी नहीं रह पाता है तो वह सीधे अपनी ओर से तलाक का आदेश दे सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को तलाक पर अहम फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर पति-पत्नी के बीच संबंध बिगड़ते हैं और विवाह जारी नहीं रह पाता है तो वह सीधे अपनी ओर से तलाक का आदेश दे सकता है. कोर्ट ने कहा कि वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत फैमिली कोर्ट में भेजे बिना तलाक दे सकती है. इसके लिए 6 महीने का वेटिंग अनिवार्य नहीं होगा.
तलाक पर फैसला
यह फैसला जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने दिया. आपसी सहमति से तलाक पर यह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन भी जारी की है. गाइडलाइन में कोर्ट ने उन कारणों का जिक्र किया है जिनके आधार पर पति-पत्नी के रिश्ते को कभी पटरी पर नहीं लौटने वाला माना जा सकता है. कोर्ट की ओर से जारी गाइडलाइन में भरण-पोषण, गुजारा भत्ता और बच्चों के अधिकारों के संबंध में भी जिक्र किया गया है.
सहमति से तलाक
दरअसल, हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 13बी में प्रावधान है कि अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी दे सकते हैं. हालाँकि, पारिवारिक न्यायालय में मामलों की अधिक मात्रा के कारण, आवेदन को न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई के लिए आने में समय लगता है. इसके बाद तलाक के लिए पहला प्रस्ताव जारी किया जाता है, लेकिन दूसरा प्रस्ताव यानी तलाक की औपचारिक डिक्री प्राप्त करने के लिए 6 महीने तक इंतजार करना पड़ता है.
तलाक का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए कई मामलों में इस आधार पर तलाक का आदेश दिया था कि विवाह को जारी रखना संभव नहीं है. अनुच्छेद 142 में प्रावधान है कि सर्वोच्च न्यायालय कानूनी औपचारिकताओं को दरकिनार कर न्याय के हित में कोई भी आदेश पारित कर सकता है.