सुप्रीम कोर्ट की तरफ से चार धाम परियोजना को मंजूरी मिल गई है. कोर्ट की ओर से ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने को लेकर इजाजत दे दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से चार धाम परियोजना को मंजूरी मिल गई है. कोर्ट की ओर से ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने को लेकर इजाजत दे दी गई है. साथ ही डबल लेन हाइवे बनाने का रास्ता भी अब साफ हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत सेना के सुरक्षा संसाधनों को तय नहीं कर सकती हैं. रक्षा मंत्रालय को हाइवे के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने को लेकर किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है. कोर्ट ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से सीमाओं पर सुरक्षा को लेकर कई बड़ी चुनौतियां सामने आई है. यह अदालत सशस्त्र बलों की ढांचागत जरूरतों का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है. इतना ही नहीं पर्यावरण का ख्याल रखते हुए सारे उपचारात्मक उपाय सुनिश्चित करने के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके सीकरी के नेतृत्व में एक निरीक्षण समिति भी गठित की गई है.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया, 'सामरिक महत्व के राजमार्गों के साथ अन्य पहाड़ी इलाकों के समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है. वे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं. पर्यावरणीय मुद्दों के रखरखाव के लिए निरंतर निगरानी की भी आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश जस्टिस ए के सीकरी की अध्यक्षता में एक निरीक्षण समिति का गठन किया है. इसमें राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान और पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिनिधि भी होंगे.समिति का उद्देश्य नई सिफारिशों के साथ आना नहीं है बल्कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति की मौजूदा सिफारिशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है.समिति हर 4 महीने में परियोजना की प्रगति पर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट करेगी. अब सड़क की चौड़ाई 10 मीटर करने की इजाजत दे दी गई है
सरकार की नीतिगत पसंद पर नहीं उठा सकते सवाल
इन सबके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत यहां सरकार की नीतिगत पसंद पर सवाल नहीं उठा सकती है और इसकी अनुमति नहीं है.राजमार्ग जो सशस्त्र बलों के लिए रणनीतिक सड़कें हैं, उनकी तुलना ऐसी अन्य पहाड़ी सड़कों से नहीं की जा सकती है.हमने पाया कि रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर एमए में कोई दुर्भावना नहीं है.MoD सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकता को डिजाइन करने के लिए अधिकृत है.सुरक्षा समिति की बैठक में उठाई गई सुरक्षा चिंताओं से रक्षा मंत्रालय की प्रामाणिकता स्पष्ट है.सशस्त्र बलों को मीडिया को दिए गए बयान के लिए पत्थर में लिखे गए बयान के रूप में नहीं लिया जा सकता है.न्यायिक समीक्षा के अभ्यास में यह अदालत सेना की आवश्यकताओं का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है.