श्रीलंका में इस वक़्त कड़की चल रही है, और इस कंगाली हालत में पहुंचने का सबसे बड़ा कारण टैक्स कटौती को माना जा रहा है.
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे आर्थिक संकट से झूझ रहा है. इस संकट से निपटने में नाकायाबी को लेकर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर इस्तीफा देने का दवाब बन रहा है. वहीं बढ़ती महंगाई से गुस्साई जनता देश के कई हिस्सों में प्रोटेस्ट कर रही है. हिंसक प्रदर्शन को देखते हुए फिलहाल देश में इमरजेंसी का लागू की गयी है.
श्रीलंका में इस वक़्त कड़की चल रही है, और इस कंगाली हालत में पहुंचने का सबसे बड़ा कारण टैक्स कटौती को माना जा रहा है. इसके अलावा टूरिज्म इंडस्ट्री का धाराशायी होना भी एक बड़ी वजह है. परिणाम यह है कि श्रीलंका का कर्ज प्रबंधन कार्यक्रम बदहाल हो गया है और फरवरी महीने तक देश पर 12.55 बिलियन डॉलर का कर्ज हो गया है. इन 12.55 बिलियन डॉलर में से 4 बिलियन का कर्ज इसी साल चुकाना पड़ेगा।
श्रीलंका ने119.08 अरब रुपये छापे
देश में खराब हो रही आर्थिक स्थिति और बढ़ती महंगाई के मद्देनज़र श्रीलंका ने 119.08 अरब रुपये छापे है. श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने जानकारी दी है कि देश ने 119.08 अरब रुपये छापे हैं. इस साल में अब तक 432.76 अरब रुपये छापे जा चुके हैं. श्रीलंका का इरादा इसके जरिए खुद को आर्थिक संकट से बाहर निकालने का है.
चीन नहीं कर रहा श्रीलंका की कोई मदद
श्रीलंका का इंटरनैशनल सोवरेन बॉन्ड, एशियन डिवेलपमेंट बैंक, चीन और जापान में विदेशी कर्ज का बड़ा हिस्सा है. गौर करने वाली बात ये है कि संकट के इस समय में चीन ने भी श्रीलंका की कोई मदद नहीं की. जबकि चीन और श्रीलंका के अच्छे संबंध हैं. वहीं इसके उलट श्रीलंका ने जिस भारत से दूरियां बढ़ाई, उसी ने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए मदद भेजी.