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दिल्ली में पराली जलाने और दिवाली पर फोड़े जाने वाले पटाखों के चलते प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा बढ़ गया है. ऐसे में अब लोगों की मुसीबत बढ़ चुकी है. मंजर तो ये है कि खुले में सांस लेने पर लोगों को अब घुटन होने लगी है. दिल्ली के अस्पतालों में गले में खराश और सांस लेने में परेशानी के चलते मरीजों की संख्या अब बढ़ रही है.
सांस की परेशानी वाले मरीजों की बढ़ती संख्या पर वसंत कुंज के फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनोलॉजी सलाहकार डॉ, निखिल बंटे ने अपनी बात में कहा कि दिवाली के बाद खांसी और नाक बंद होने के मामले बढ़े हैं. ओपीडी में आने वाले मरीजों में सांस की तकलीफ के रोगियों में 20 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है.
इन सबके अलावा द्वारका के आकाश हेल्थकेयर के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अक्षय बुधराजा ने अपनी बात में कहा सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना, गले में खराश, सीने में संक्रमण, एलर्जी और अस्थमा के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि पार्टिकुलेट मैटर का हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अलग-अलग असर पड़ता है. यह व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य की स्थिति, गर्भावस्था, व्यावसायिक जोखिम और धूम्रपान की आदतों पर निर्भर करता है.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि प्रदूषित हवा में महज कुछ मिनट बिताने से आंख आना (conjunctivitis),सांस की तकलीफ, सिरदर्द, नींद न आना, ध्यान एकाग्र न कर पाना, उल्टी और पेट में दर्द सरीखी बीमारियां हो सकती हैं. साथ ही स्किन एलर्जी की प्रॉब्लम भी हो सकती है."
वहीं, बुधराजा ने ये भी कहा कि पोटेशियम क्लोरेट, सल्फर, आर्सेनिक सल्फाइट, एल्युमीनियम और कॉपर जैसी धातुएं हवा में अवशिष्ट पार्टिकुलेट मैटर (आरपीएम) और सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) का स्तर बढ़ाती हैं, यह स्किन एलर्जी का बड़ा कारण है. वहीं पटाखों से निकलने वाला नाइट्रोजन ऑक्साइड बच्चों की स्किन में जलन, आंख और सांस की समस्या पैदा करता है.
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