अगर किसी इंसान के धड़ का आधा हिस्सा लकवाग्रस्त हो जाए तो उसका उठना-बैठना मुश्किल हो जाता है, लेकिन जब न तो पैर चलते हैं और न ही हाथ चलते हैं तो इंसान पैदल ही चलता है तो इसे अजूबा ही कहा जाएगा.
अगर किसी इंसान के धड़ का आधा हिस्सा लकवाग्रस्त हो जाए तो उसका उठना-बैठना मुश्किल हो जाता है, लेकिन जब न तो पैर चलते हैं और न ही हाथ चलते हैं तो इंसान पैदल ही चलता है तो इसे अजूबा ही कहा जाएगा. ऐसा ही कुछ हो रहा है एक 65 साल के बुजुर्ग के साथ. इसे माता करीला का चमत्कार बताते हुए वे खुद 200 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकल पड़े हैं.
200 किलोमीटर की पदयात्रा
65 वर्षीय रामदास का दावा है कि करीला माता ने उन्हें नया जीवन दिया है. तबीयत बिगड़ने पर उसने अपनी मां से प्रार्थना की थी कि अगर वह ठीक हो जाए तो वह पैदल ही उससे मिलने आ जाए. लकवाग्रस्त रामदास ने अपनी इच्छा पूरी करने के बाद 200 किलोमीटर की पदयात्रा भी शुरू कर दी है. बारिश हो या धूप, उसके पांव नहीं थम रहे हैं।
दुआ का असर
दरअसल, बुंदेलखंड के लोग दवा से ज्यादा दुआ के असर को मानते हैं. सागर के गढ़ाकोटा प्रखंड के मोटार गांव में रहने वाले रामदास पिछले महीने बीमार पड़ गए थे. उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई थी, जिसके चलते उन्होंने करीला माता से प्रार्थना की थी कि अगर वह ठीक हो जाएं तो पैदल ही उनके दरवाजे तक आ जाएं.
वृद्ध की तबीयत में सुधार
दवा खाने के बाद वृद्ध की तबीयत में सुधार होने लगा. जब उन्हें लगा कि वे चलने लायक हो गए हैं तो उन्होंने माता का लाल झंडा लेकर पीठ पर 15 किलो का वजन लाद लिया और पैदल चलकर माता के द्वार तक पहुंचे. लकवाग्रस्त होने के बावजूद रामदास रोजाना 20 किलोमीटर पैदल चल रहे हैं. चिलचिलाती धूप में भी वह चलता रहता है.
माता की भक्ति में लीन
वह मां की भक्ति में इतना लीन है कि उसकी आस्था लकवे पर भारी पड़ गई। रामदास 10 दिन में अशोकनगर जिले स्थित करीला धाम पहुंचेंगे, जहां ध्वजा चढ़ाकर मां की पूजा अर्चना करेंगे. रामदास कई वर्षों से माता की भक्ति में लीन हैं और उनका कहना है कि उनकी कृपा से वे मृत्यु से बच गए हैं. मां की कृपा से इन्होंने दूसरा जन्म लिया है. मां की कृपा ही ऐसी है कि लकवाग्रस्त होने के बावजूद आज वह चल पा रहे हैं.