हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो कर्मकांडों के अनुसार उसे मृत्यु के बाद श्राद्ध करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो कर्मकांडों के अनुसार उसे मृत्यु के बाद श्राद्ध करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसे में बिहार से एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां एक जीवित बुजुर्ग ने पहले श्राद्ध किया और अब जयंती भी धूमधाम से मनाई गई. मामला मुजफ्फरपुर के सकरा थाना क्षेत्र के भारतीपुर का है.
सदस्यों को कोई परेशानी नहीं
यहां संत प्रवृति के 73 वर्षीय हरिश्चंद्र दास ने श्राद्ध किया और फिर जयंती धूमधाम से मनाई. हरिश्चंद्र दास ने बताया कि वह एक कबीरपंथी हैं और इस दुनिया और परिवार से मोहित नहीं होना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने जीवित रहते हुए अपना श्राद्ध किया. उन्होंने बताया कि युवावस्था से ही हम सोचते थे कि हम अपना श्राद्ध स्वयं करेंगे, मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, इसलिए हमने उन्हें इन कार्यों से मुक्त कर दिया.
खुशी खुशी किया श्राद्ध
हालांकि हरिश्चंद्र दास का कहना है कि उनके परिवार और मोहल्ले के लोगों ने पहले मना किया, लेकिन बाद में सभी ने हामी भर दी और खुशी-खुशी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया. हरिश्चंद्र दास के दो बेटे और चार बेटियां हैं. सभी शादीशुदा हैं, उनकी पत्नी परिवार के साथ रहती है. बेटे विदेश में काम करते हैं. उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार और अपने बच्चों के लिए बोझ बनकर नहीं जाना चाहते, इसलिए उन्होंने अपना श्राद्ध कर्म 15 नवंबर 2021 को ही किया.
पिता की पुण्यतिथि
बुजुर्ग के परिवार वाले उनके फैसले के साथ खड़े हैं. हरिश्चंद्र दास की पत्नी ने पति के फैसले का स्वागत किया, वहीं बेटी भी पिता की पुण्यतिथि पर मायके पहुंची. वहीं, बहुएं कहती हैं कि वे संत हैं, इसलिए उन्हें खुद को मोक्ष देने का अधिकार है. हरिश्चंद्र दास के इस फैसले से पहले तो ग्रामीण चौंक गए, बाद में सभी ने सहयोग किया.
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