मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर पर केंद्र सरकार ने क्यों निकाली? क्या आतंकित समुहों का समर्थन करती है ये पार्टी?
मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर पर केंद्र सरकार ने क्यों निकाली? क्या आतंकित समुहों का समर्थन करती है ये पार्टी? क्या नेता मसर्रत आलम हैं आठनवादियों के तरफदार? अब क्या मोड़ लेगी जम्मू कश्मीर की राजनीति? आइए जानते हैं इस वीडियो में।
अमित शाह का पोस्ट, पीएम मोदी का संदेश!
आज की ताजा खबरें के मुताबिक मोदी सरकार ने मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर को "गैरकानूनी संगठन" बताया, इसे 5 साल के लिए बैन कर दिया है। जेल में बंद अलगाववादी नेता मसर्रत आलम के नेत्रत्व में बनी ये पार्टी यूएपीए कानून यानी गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दी गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसरत आलम गुट) को यूएपीए के तहत “गैरकानूनी संगठन” करार दिया गया है। ये संस्था या इसके सदस्य राज्य में राष्ट्रविरोध गतिविधि में लुप्त हो गए हैं। साथ ही ये आतंकवादी गतिविधियों के समर्थ हैं या लोगों को जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक शासन बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश सीधा या साफ है। देश की एकता, अखण्डता, या सम्प्रभुता के ख़िलाफ़ कदम उठाने वाले को बक्शा नहीं जाएगा या कानून की मार झेलेगी।”
क्या असर होगा?
सीधे शब्दों में कहें तो किसी भी संगठन को "गैरकानूनी" घोषित करने का मतलब है कि उसके सदस्यों का अपमान हो सकता है या साथ ही उसकी संपत्ति जब्त होने का खतरा भी बना रहता है। गृह मंत्रालय के अनुसार भारत में 42 एसोसिएशनों को अवैध घोषित किया गया है। इनमें लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, अल-कायदा या कई खालिस्तानी संगठन भी शामिल हैं।
मसर्रत आलम कौन है?
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो मुस्लिम लीग के नेता मसर्रत आलम भट्ट 2010 में कश्मीर में आजादी समर्थक विरोध प्रदर्शन के मुख्य आयोजकों में से एक थे। क्या दौरे हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद मसर्रत आलम या दूसरे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके बाद 2015 में वो रिहा हुआ था। सुत्रों के मुताबिक इस घाटना के बाद ही पीडीपी या बीजेपी गठबंधन में दरार आई थी।
फिल्हाल ये नेता 2019 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है। सैय्यद अली शाह गिलानी की मौत के बाद 2021 से वो कश्मीरी कत्तरपंथी समूह सभी दलों के हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष भी हैं। कहते हैं कि पाकिस्तानी समर्थक माना जाने वाला ये नेता 1990 से ही आतंकवाद में शामिल हो गया था। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह का स्थानीय कमांडर होने के दौरान ही उसने मुसिम लीग की स्थापना की। 52 साल के मसर्रत आलम के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भी मामला दर्ज किया था।
पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने घाटी में कई ऐतिहासिक फैसले लिए हैं। कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 370 का फैसला इस बात का सबूत है कि धीरे-धीरे ही सही, लेकिन सरकार कश्मीर में बदलाव की आंधी ला रही है जो भारत के सर्वांगीण विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है।