लद्दाख के दीवाने हर जगह आपको देखने को मिल जाएंगे, लेकिन आइए यहां जानते हैं कि किन वजहों के चलते वो इस जगह के फैन हुए बैठे हैं.
हिन्दुस्तान की सबसे खास और शानदार जगह की बात की जाए तो वो लद्दाख है. यहां पर एक अलग ही ताजगी का अहसास होता है. वातावरण, हवा और यहां के रहने वाले लोगों का बर्ताव आपके भीतर एक शांति सी पैदा करने में मदद करता है. इसकी कुल जनसंख्या 236,539 है. ऐतिहासिक ही नहीं भौगोलिक तौर पर बिल्कुल ही अलग जगह है. ये जम्मू-कश्मीर में मौजूद है. यहां ज्यादातर लोग बाइक पर सवार होकर घूमना पसंद करते हैं. आइए आपको बताते हैं कि किस तरह से भौगोलिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक तौर पर ये जगह अपने आप में खास है.
लद्दाख यदि आप पहली बार जाएंगे तो यहां का मौसम आपको थोड़ा दगाबाज सा लगेगा. दिन में तो तेज धूप होगी और देखते ही देखते सर्द हवाएं अपने अंदर आपको समेट लेगी. प्राचीन काल में लद्दाख व्यापारिक रास्तों का मुख्य केंद्र था. मध्य एशिया से कारोबार का एक बड़ा गढ़ उसे माना जाता था. सिल्क रूट की एक शाखा लद्दाख से होकर ही जाती थी. दूसरे मुल्कों के कारवां के साथ सैकड़ों ऊंट, खच्चर और कालीन वहां से लेकर जाया करते थे.
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चीन के चलते खत्म हो गया था व्यापार
सिल्क रूट के चलते ही हिन्दुस्तानी मसालें की सारी दुनिया में मांग रही थी. एक वक्त ऐसा भी था जब लद्दाख में हिन्दुस्तानी रंग और मसाले आदि खुब प्रसिद्ध थे. 1950 में इस क्षेत्र से व्यापार पूरी तरह से खत्म हो गया था. ऐसा इसीलिए क्योंकि चीन में कम्युनिस्ट सरकार की नीतियां बिल्कुल भिन्न थी . चीन बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि पारंपरिक तौर पर व्यापार में वृद्धि हो. दूसरी अहम बात ये है कि चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा जमा लिया था. चीन ये नहीं चाहता था कि तिब्बत को बाहरी दुनिया से किसी भी तरह का ताल्लुक रखवाया जाए.
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सांस्कृतिक तौर पर देखा जाए तो लद्दाख एक शांत क्षेत्र है. ये घूमने-फिरने वाले लोगों के लिए बेहतरीन जगह है. जम्मू-कश्मीर के भीतर ये आता है, लेकिन यहां की संस्कृति घाटी से वो पूरी तरह से अलग है. आजादी के बाद से यहां के नेता इसे एक अलग राज्य बनाने की जुगत में लगे हुए थे. इतना ही नहीं कुछ नेताओं की इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने की भी इच्छा है. यही वजह रही थी कि बीजेपी सांसद रहे थुपस्तान चेवांग ने लद्दाख को कश्मीर से अलग करके एक केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी थी. वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है जबकि आजादी के बाद भी जब कश्मीर भारत में शामिल हुआ था, उस वक्त भी दक्षिणपंथी नेता बलराज मधोक ने ये मांग उठाई थी.