श्राद्ध का सनातन धर्म में काफी महत्व है। पितरों और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं।
श्राद्ध का सनातन धर्म में काफी महत्व है। पितरों और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक इस साल पितृ की शुरुआत 17 सितंबर हो रही है, जिसका समापन अगले महीने 2 अक्तूबर 2024 को होगा। प्राचीन काल से ही इसकी परंपरा चलती जा रही है।
लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे पहले श्राद्ध की किसने की थी शुरुआत? आइए इस सवाल का जवाब हम आपको देते हैं यहां। दरअसल वाल्मीकि रामायण के मुताबिक त्रेता युग में राम जी को 14 साल का वनवास दिया गया था। जहां उनके साथ भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता भी गए थे। पुत्रों के वियोग में राजा दशरथ की तबीयत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी, जिसके बाद एक दिन उनकी मौत हो गई। ऐसे में प्रभु राम, मां सीता और लक्ष्मण जी ने वनवास के दौरान ही पितृ पक्ष की पूजा करने का निर्णय किया।
समय पर नहीं की गई पूजा तो होगा अनर्थ
श्राद्ध पूजा के लिए कुछ खास सामग्री चाहिए थी, जिसे लेने के लिए भगवान राम और लक्ष्मण जी वन से दूर चले गए थे। बहुत देर इंतजार करने के बाद भी जब देवता नहीं आए, तो पंडित जी ने माता सीता ने कहा,'श्राद्ध पूजा का समय निकल रहा है। यदि सही समय पर पूजा नहीं की गई, तो अनर्थ हो सकता है। आगे फिर पंडित जी ने देवी को बताया,'पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्रवधू भी अपने पिता का पिंडदान कर सकती है, जिसका अधिकार शास्त्रों में भी है। ऐसे में देवी सीता ने फल्गु नदी, केतकी फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू से पिंड बनाया और राजा दशरथ का पिंडदान किया।