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डोनाल्ड ट्रम्प के जाने और जो बाइडेन के नए राष्ट्रपति बनने के बाद जानिए कैसा होगा भारत-अमेरिका संबंध?

2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर राष्ट्रपति ओबामा को संदेह था, लेकिन जो बाईडेन ने इस समझौते के लिए अपनी मंज़ूरी दर्शाई।

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By Anshita Shrivastav | व्यापार - 09 November 2020

विश्व का सबसे पुराने लोकतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका में हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं। लम्बे इंतज़ार के बाद चुनाव का परिणाम आ गया और जनता द्वारा 2020 में अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में डेमोक्रेट के जो बाईडेन को चुना गया है। भारत ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समय में अमेरिका के साथ बहुत ही अच्छे संबंध स्थापित किए थे, अब सवाल ये पैदा होता है कि भारत के लिए जो बाईडेन का राष्ट्रपति बनना कितना अच्छा होगा।

हालांकि बिडेन ने अभियान दस्तावेज सकारात्मक संकेत देता है। भारत के लिए बाईडेन कितने अच्छे है, और भारत और अमेरिका के संबंधों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसे समझने के लिए हमें उस समय पर प्रकाश डालना होगा जब बराक ओबामा राष्ट्रपति थे और बाईडेन उपाध्यक्ष थे। उस समय को देखते हुए ये पता चलता है कि बाईडेन ने भारत की तरफ़ अपना झुकाव दिखाया था 


भारत-अमेरिका परमाणु करार

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने का पूरा श्रेय जो बाईडेन को जाता है। 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर राष्ट्रपति ओबामा को संदेह था, लेकिन जो बाईडेन ने इस समझौते के लिए अपनी मंज़ूरी दर्शाई। संयुक्त राज्य के उपाध्यक्ष के रूप में, उन्होंने विशेष रूप से रणनीतिक क्षेत्रों में भारत-अमेरिका साझेदारी को मजबूत करने की वकालत कर रिश्तों को दुरुस्त करने का प्रयास किया था।


UNSC स्थायी सदस्यता

जो बाईडेन जब उपराष्ट्रपति थे उस दौरान, उस समय अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए अपना समर्थन दिया था जिसकी भारत लंबे समय से मांग कर रहा है।


रक्षा भागीदारी पर खड़े हों

ओबामा-बिडेन प्रशासन ने भारत को 'मेजर डिफेंस पार्टनर' का  नाम दिया था। इससे रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत में उन्नत और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी साझा करना आसान हो गया।

यह पहली बार था कि किसी देश को अमेरिका के पारंपरिक गठबंधन प्रणाली के बाहर यह दर्जा दिया गया था। बराक ओबामा प्रशासन के दौरान उपराष्ट्रपति के रूप में, जो बिडेन ने अमेरिका-दक्षिण एशिया रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2015 में मोदी-ओबामा की मुलाकात के बाद, 'एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए यूएस-इंडिया जॉइंट स्ट्रेटेजिक विजन' नामक एक अलग दस्तावेज जारी किया गया था। अगस्त 2016 में, दोनों देशों ने सैन्य सहयोग के लिए लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। यह भारत-अमेरिकी नौसैनिक सहयोग में विशेष रूप से उपयोगी रहा है।


आतंकवाद 

आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में, भारत और अमेरिका ने एक दूसरे के साथ दिया है। ओबामा के प्रसाशन के समय दोनों देशों एक साथ मिलकर आए और आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक दूसरे का सहयोग किया।

चीन को लेकर बाईडेन का रूख या प्रतिक्रिया कैसी होगी इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। पिछले छह महीनों में, ट्रम्प प्रशासन चीन के साथ सीमा-स्टैंड-ऑफ पर भारत के समर्थन में बेहद मुखर रहा है और भारत को बिडेन से भी यही उम्मीद होगी। राज्य के सचिव माइकल पोम्पेओ चीन पर काफी खुले तौर पर हमला करते रहे हैं, लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या बिडेन प्रशासन ऐसा ही करेगा?

H1B वीजा पर खड़े हों

लेकिन एक बात जो भारतीयों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि भारतीयों के लिए आव्रजन और वीजा पर बाइडेन का क्या रुख होगा, विशेष रूप से एच 1 बी वीजा पर बाईडेन क्या फ़ैसला लेंगें। डेमोक्रेट आव्रजन नीति पर अधिक उदार दिखाई पड़ते हैं। 

कश्मीर के मुद्दे पर

भारत सरकार को यह जानने में विशेष रुचि होगी कि कश्मीर मुद्दे पर बिडेन का क्या रुख होगा। धारा 370 को रद्द करने और नागरिकता अधिनियम को पारित करने के बाद, ट्रम्प प्रशासन ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया था।


सीएए / एनआरसी 

बिडेन के अभियान नीति पत्र ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत सरकार द्वारा असम में NRC के कार्यान्वयन और नागरिकता संशोधन अधिनियम के पारित करने का फ़ैसला उन्हें पसंद नहीं आया था।

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