आप मंदिर में भगवान के पास दर्शन के लिए जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है मंदिर से जुड़ी उन वैज्ञानिक तत्वों के बारे में जिसने सभी को हैरानी में डाल दिया।
मंदिरों के निर्माण की पूरी कला सिर्फ एक कला नहीं है; यह एक विज्ञान है। इसका हर एक पहलू - मूर्तियों के आकार से लेकर दिशाएँ और गर्भगृह तक विज्ञान से जुड़ा हुआ है। भारत अपने हिंदू कल्चर और ट्रेडिशन के चलते जाना जाता है। भारत में कई अलग-अलग प्रकार, जगह और डिजाइन के मंदिर मौजूद हैं। लेकिन सभी मंदिर का वर्णन वैदिक साहित्य में नहीं हैं।
मंदिरों के दर्शन केवल आशीर्वाद पाने के लिए नहीं बल्कि एक शांत और बेहतर माइंड सेट करने के लिए भी लोग करते है। हिंदू शास्त्र के अनुसार मंदिर जाने का वास्तविक उद्देश्य वैज्ञानक के आधार पर क्या है आइए जानते हैं उसके बारे में खुलकर यहां।
मंदिर का निर्माण
मंदिर बनाने के लिए हमेशा उन्हीं जगह का चयन किया जाता है। जहां ज्यादा से ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का वास हो। एक ऐसी जगह को देख जाता है जहां उत्तरी की तरफ से सकारात्मक रुप से चुंबकीय या फिर विद्युत तरंगों को आना-जाना हो। मंदिर के मुख्य केंद्र में भगवान की मूर्ति स्थापित होती है, जिसे "गर्भगृह" या मूलस्थान भी कहा जाता है। ज्यादातर ऐसी जगहों पर ही बड़े मंदिर बनाते हैं जहां लोगों के शरीर को अधिक सकारात्मक एनर्जी मिल सके।
मंदिर में इसीलिए नहीं पहनते हैं चप्पल
मंदिर एक ऐसी जगह पर होते हैं जहां इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक तरंगे पैदा हो सकें वो भी सकारात्मक ऊर्जा के साथ। जब कोई नंग पैर फर्श पर चले तो उसके पैरों के जरिए ज्यादा ऊर्जा शरीर में जा सकें। इसके मंदिर में नंगे पैर लोगों को प्रवेश करने की अनुमति है। साथ ही चप्पलों में कई सारे गंदी लगी होती है जोकि शुद्ध वातावरण को दुषित करने का काम करती है। इसी लिए मंदिर मेें चप्पल नहीं पहनकर जा सकते हैं।
घंटिया बजाने के होते है ये फायदे
जब भी आप मंदिर में प्रवेश करते हैं तो घंटी या फिर घंटा बजाकर करते हैं। ये घंटियां इस तरह का साउंड पैदा करती है जिसके चलते यूनिट हमारे लेफ्ट से राइट ब्रेन में क्रिएट होती है। जब घंटी बजाई जाती है तो उसका ईको 7 सेकेंड तक बना रहता है। जोकि हमारे शरीर की 7 सेंटर को हील करने में मदद करती है। जिसके चलते सारी नकारात्मक चीजें चली जाती है। पहाड़ों पर जो मंदिर होते हैं वहां घंटिया बजने से कोई भी जंगली जानवर वहां नहीं आता है।
भगवान के आगे कपूर जलाने का ये है कारण
मंदिर का भीतरी भाग आमतौर पर अंधेरे से भरा रहता है जहाँ मूर्ति रखी जाती है। आप आमतौर पर प्रार्थना करने के लिए अपनी आँखें बंद करते हैं और जब आप अपनी आँखें खोलते हैं तो आपको उस वक्त कपूर देखना चाहिए जो मूर्ति के सामने आरती करने के लिए जलाया गया था। अंधेरे के अंदर देखा गया यह प्रकाश आपके दिमाग को राहत देने के लिए काफी है।
फूल चढ़ाना है जरूरी
फूल देखने में अच्छे होते है, अच्छी खुशबू फैलाते है, स्पर्श करने पर उन्हें बहुत नरम महसूस होता है। केवल खास फूलों का उपयोग भगवान के लिए होता है जैसे कि गुलाब की पंखुड़ियों, चमेली, विभिन्न मैरीगोल्ड आदि। उनमें से खुशबू सबसे महत्वपूर्ण है। फूल, कपूर और बाकी खुशबू वाली सभी चीजें एक साथ मिलाती है, जो आपकी गंध को सक्रिय रखने और मन को शांति प्रदान करने के लिए मजबूत प्रदान करती है।
इसके लिए लगाते हैं परिक्रमा
जब आप मंदिर में परिक्रमा लागते हैं तो अजीब सी शक्ति का एहसास करते हैं। हर मंदिर में पूजा के बाद परिक्रमा लाना जरूरी होता है। इसमें वैज्ञानिक के मुताबिक परिक्रमा करने की वजह से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा आपके शरीर में प्रवेश करती है और आपका मन भी काफी शांत रहता है।
टीका लगाने के फायदे
माथे पर और दोनों भौंहों के बीच एक ऐसा स्थान है जिसे प्राचीन काल से मानव शरीर में एक प्रमुख तंत्रिका बिंदु माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तिलक को "ऊर्जा" के नुकसान को रोकने के लिए लगाया जाता है। इससे चेहरे की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति में भी आसानी होती है। कुमकुम के टीके की बात करे तो यह मानव शरीर में ऊर्जा और एकाग्रता बनाए रखता है।
मंदिर का नहीं हिंदुओं से ताल्लुक
मंदिर हिंदुओं से ताल्लुक नहीं रखता हैं। मंदिर किसी भी मान्यता से संबंधित नहीं है। मंदिर लोगों के लिए सिर्फ एक मार्गदर्शक स्थान है। चर्च, मस्जिद भी इसी तरह से हैं। सभी सड़कें सिर्फ एक जगह जाती हैं! एक बार जब आपके पास ध्यान का गहन अनुभव होता है तो आप अपने अंदर मंदिर का निर्माण करते हैं।