आगरा में प्यार का प्रतीक माने जाने वाले ताजमहल के बनने से पहले दिल्ली में एक प्यार की निशानी को बनाया जा चुका था जोकि अपने आप में ही सच्चे प्यार की मिसाल हैं।मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक रहीम ने अपनी बेगम के लिए बनवाया था.
प्यार एक ऐसी चीज है जो हर किसी को पसंद होता है और हर कोई प्यार करता ही है लेकिन इस बात को गलत साबित नहीं किया जा सकता है कि आज के टाइम में सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिल पाता है वही अगर हम इतिहास को देखें तो हमें सच्चे प्यार की एक से बढ़कर एक कहानी देखने को मिलेगी। पहले के लवबर्ड सिर्फ प्यार ही नहीं करते थे बल्कि अपने प्यार को हमेशा के लिए जिंदा रखने के लिए कुछ न कुछ निशानी भी बनाते थे। स्मारक हमेशा ऐतिहासिक महत्व की याद दिलाते हैं। यही नही इतिहास में बनाएं गए प्यार के कई प्रतीक जैसे किले और महल आज भी आस्तित्व में हैं। इन ऐतिहासिक इमारतों को आज भी प्यार की मिसाल के रूप में ध्यानपूर्वक इनको पहले की ही तरह रखा गया है। हर इमारत की अपनी कहानी है। कोई प्रेम से संबंधित है, कोई प्रेम में कुर्बानी से तो कोई कर्त्तव्य की कहानी लिए हुए है। ये ऐतिहासिक स्मारक सिर्फ खुशी ही नहीं बल्कि प्यार में कुर्बान हुए और सच्ची प्रेम कहानियों की भी गवाही देते हैं। आज हम आपको देश की ऐसी ऐतिहासिक इमारत के बारे में बता रहे हैं जोकि ताजमहल के निर्माण से पहले इस प्यार का प्रतीक वाली इमारत का निर्माण किया गया था जोकि अपने आप में ही सच्चे प्यार की मिसाल हैं।
आगरा में प्यार का प्रतीक माने जाने वाले ताजमहल के बनने से पहले दिल्ली में एक प्यार की निशानी को बनाया जा चुका था जिसे उस समय के शक्तिशाली शाही शक्स ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। आपको बता दें कि ताजमहल के बनने से करीब 40-50 साल पहले इस इमारत का निर्माण दिल्ली में किया गया था। उसी ताजमहल को प्यार का प्रतीक माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ताजमहल के निर्माण से पहले भी दिल्ली में एक इमारत थी जिसे रहीम का मकबरा कहा जाता है जोकि मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक रहीम ने अपनी बेगम के लिए बनवाया था जो निजामुद्दीन में हुमायूं के मकबरे के ठीक बगल में बनाया गया था।
रहीम का मकबरा हुमायूँ के मकबरे के जैसा बनाया गया है जो हुमायूँ के मकबरे से काफी मिलता-जुलता है। रहीम के मकबरे के बनने के लगभग 150 साल बाद इस इमारत में मौजूद कीमती पत्थरों को निकाल कर सफदरजंग मकबरे में लगाया गया था जिसे नवाब शुजाउद्दौला ने अपने पिता सफदरजंग (मिर्जा मुकिम अबुल मंसूर खान) के लिए बनवाया था।
by-asna zaidi