कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने भारत माता की रक्षा के लिए हंसते हुए मौत को गले लगा लिया.
Kargil Vijay Diwas: देश के जाबांजों के हौसले की जीत का दिन आज कारगिल विजय दिवस है. कारगिल जिसका नाम सुनते ही बच्चे क्या, बूढ़े सबके दिलों में उमंग और जोश हिलोरें मारने लगता है, आखिर ऐसा हो भी क्यों न? जब दुर्गम और अजेय कारगिल की पहाड़ियों पर हुई जंग को हमारे जाबांजों ने कभी हार न मानने वाले जज्बे से फतह कर दिखाया हो. जुलाई 1999 भुलाए नहीं भूलता, जब खेलने-खाने की उम्र में हमारी सेना के नौजवान सैनिकों और अफसरों ने भारत माता की रक्षा के लिए खुशी-खुशी मौत को गले लगा लिया, लेकिन क्या आप जानते हैं इस जंग में कैसे भारत ने पासा पलटा ? भारतीय सेना ने इस जंग में "कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़मां हमारा" को जीवंत कर दिखाया था और पहले से ही कारगिल की पहाड़ियों पर लड़ाई के लिए तैयार बैठी पाकिस्तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी.
राशन खत्म होने के डर ने हरा डाला पाक कोः इस लड़ाई की शुरूआत 22 साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ के साथ हुई थी.कारगिल पर लिखी फेमस बुक 'विटनेस टू ब्लंडर- कारगिल स्टोरी अनफ़ोल्ड्स' (Witness To Blunder: Kargil Story Unfolds) के मुताबिक कारगिल की आज़म चौकी और दिन था 8 मई, 1999 का. पाकिस्तान की 6 नॉरदर्न लाइट इंफ़ैंट्री के कैप्टेन इफ़्तेख़ार और लांस हवलदार अब्दुल हकीम 12 सैनिकों के साथ इस चौकी पर बैठे हुए थे. इन लोगों ने कुछ दूरी पर कुछ चरवाहों को मवेशी चराते हुए देखा. आपस में अपने साथियों के साथ सलाह कर कैप्टन इफ़्तेख़ार ने इन चरवाहों को बंदी बनाने के बारे में सोचा, लेकिन उनमें से ही एक ने कहा कि बंदी बनाने पर चरवाहे उनका राशन खा जाएंगे. अभी डेढ़ घंटा भी नहीं बीता था कि ये चरवाहे भारतीय सेना के जवानों के साथ वापस लौटे और सैनिकों दूरबीन से उस जगह का जायजा लिया और वापस लौट गए. उसी दिन दोपहर में क़रीब 2 बजे वहां एक लामा हेलिकॉप्टर उड़ता हुआ आया. यही वह दिन था जिस दिन भारतीय सेना को पाकिस्तानी घुसपैठ के बारे में पता चला. फिर क्या था, भारतीय सेना ने भी देरी नहीं की और डटकर पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए तैयार हो गई. इस सेना में विक्रम बत्रा और विजयंत थापर जैसे जाने कितने ही नौजवान थे, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर दुश्मन को कारगिल की पहाड़ियों से खदेड़ डाला.26 जुलाई तक चली इस लड़ाई में भारतीय सेना के इन्ही जाबांजों की याद में कारगिल विजय दिवस मनाना जाता है और ऐसा कैसे हो सकता है कि हम इस दिन ऐसे बलिदानियों किस्से न कहें उन्हें याद न करें, क्योंकि उनकी वीरता हमारी यादों में मुस्कुरा रही है.
यादों में मुस्कुरा रहें हैं वो अब भीः "मेरी सरजमीं पे बुरी निगाहों का साया न हो, गम नहीं गर मैं नहीं, मेरा वजूद फ़ना मेरे देश की बाहों में हो..." देश पर जान देने वाले इन शहीदों पर ये लाइनें सटीक बैठती हैं. इन शहीदों में कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे युवा है जिन्हें भारत का बच्चा- बच्चा जानता है. मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने वाले कैप्टन बत्रा इस युद्ध का युवा चेहरा बनकर उभरे. ऐसा युवा सैनिक जो अपने देश के लिए लड़ा और शहीद हो गया.17,000 फीट की ऊंचाई से उनका बोला डायलॉग 'ये दिल मांगे मोर' हर देशवासी की जुबान पर चढ़ गया. बचपन में ही वह मिलिट्री यूनिफॉर्म में जवानों को देखकर जोश से भर जाते थे. कैप्टन विक्रम हर रविवार को दूरदर्शन पर आने वाले टीवी सीरियल 'परमवीर चक्र' के दीवाने थे और यही दीवानगी उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार तक खींच लाई.
कुछ ऐसा ही किस्सा यंग कैप्टन वियजंत थापर का भी रहा. 29 जून 1999 को शहीद होने वाले कैप्टन थापर ने अपने जीवन के सिर्फ 22 बसंत ही देखे थे. नोएडा के सेक्टर-29 अरुण विहार के मकान नंबर 89 में अभी भी उनकी मां तृप्ता थापर बचपन से जवानी की दहलीज पर पहुंचे अपने रॉबिन (कैप्टन थापर के निकनेम) के कदमों की आहट को महसूस करती हैं. वह बताती हैं कि रॉबिन की इतनी यादें हैं कि कभी लगता ही नहीं कि वह दुनिया में नहीं है. शहीद थापर की मां उस वाकये को याद करके आज भी इमोशनल हो जाती हैं, जब आखिरी बार उनके बेटे ने मदर्स डे पर उन्हें विश किया था. वह कहती हैं कि विजयंत कभी भी मदर्स डे पर कार्ड भेजना नहीं भूलता था.शहादत से पहले उसे कश्मीर के मीना मर्ग में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था. यह जगह कारगिल से पहले पड़ती है. उस वक्त दिल्ली का एक परिवार वहां घूमने गया था. रॉबिन जानता था कि उसे कार्ड भेजने का मौका नहीं मिल पाएगा, इसलिए उसने उस परिवार को कहा कि वह दिल्ली पहुंच कर उसकी मां को मदर्स डे विश करें. लेकिन मदर्स डे पर उन्हें आज भी इंतजार रहता है उस एक कार्ड का जो उनका रॉबिन उन्हें भेजा करता था, उन्हें अभी भी लगता है कि रॉबिन कहीं से सरप्राइज कर दें. मरणोपरांत वीर चक्र पाने वाले कैप्टन थापर के नाम पर नोएडा के गोल चक्कर से सेक्टर-37 तक को विजयंत थापर मार्ग है.
ऐसे ही "मां ऐसा काम करके आऊंगा कि सारी दुनिया याद करेगी' कहने वाले शहीद कैप्टन सौरभ कालिया को भला कौन भूल सकता है. ये बात उन्होंने कारगिल की लड़ाई में जाने से पहले अमृतसर रेलवे स्टेशन पर अपनी मां विजया कालिया से कही थी. बहुत कम बोलने वाले सौरभ बेहद शांत स्वभाव के थे. अपने पांच साथियों के साथ दुश्मनों की टोह लेने निकले कैप्टन सौरभ कालिया को पाकिस्तानी सेना की अमानवीय यातनाओं से शहादत मिली थी.