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कोरोना के चलते हमारी जिदंगी में काफी सारे बदलाव आए हैं. एक वक्त ऐसा आया था जब लोग मिलने के लिए हॉय या फिर हेलो की बजाए नमस्ते (Namaste) कहकर अभिवादन करते थे. हिंदू जब भी किसी से मिलते हैं तो उसे नमस्ते शब्द से अभिवादन करते है. नमस्ते में नमन का होता. शास्त्रों के अंदर पांच तरह से अभिवादन बताए गए हैं जिनमें से एक है नमस्कार (Namaskar). इसे कई तरह से देखा और समझा जा सकता है. संस्कृत में यदि इसका विच्छेद करा जाएगा तो हम पाएंगे कि नमस्ते दो शब्दों से मिला है- नमः + ते नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया। नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नहीं.
आध्यात्म की दृष्टि से देखा जाए तो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है. नमस्ते करते वक्त दोनों हाथों को मिलाया जाता है. इसका मतलब है कि इस अभिवादन के बाद हम दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए हैं और दिशा एक हो गई है.
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नमस्ते की तरह नमस्कार शब्द भी संस्कृत व्याकरण से पाया गया है. इस शब्द को नम: बोला जाता है, जिसका मतलब होता है नमन करना. खास बात ये है कि भले ही नमस्ते और नमस्कार दोनों शब्द भावनात्मक तौर पर मेल खाते हैं लेकिन इसके इस्तेमाल की दृष्टि में काफी अंतर है. एक में ते और दूसरे में कार का इस्तेमाल होता है. ध्यान देने वाली बात ये है कि परिजनों या फिर बुजुर्गों को नमस्ते किया जाता है। जबकि नमस्कार शब्द का इस्तेमाल दो समान व्यक्तियों, दोस्तों और भाषण की शुरुआत में किया जाता है. नमस्ते करते वक्त दोनों हाथों को शरीर के अनाहत चक्र पर रखा जाता है और फिर सिर झुकाकर आंखों को बंद किया जाता है.
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बीमारियों को भगाने में है मददगार
क्या आपको पता है कि कई शोध इस बात को बताते हैं कि नमस्ते की मुद्रा से कई तरह की बीमारियों पर रोक लगाई जा सकती है. यदि आप हाथ मिलाने की बजाए नमस्ते कह देते हैं तो इससे कोरोना के अलावा हैजा, जुकाम, डायरिया जैसी बीमारियों से भी आपको निजात मिलेगी. इतना ही नहीं कुछ सालों से डॉक्टर्स तक हाथ मिलाने की बजाए नमस्ते कहने की आदत डाल रहे हैं.
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