Story Content
मथुरा जिले से लगभग 21 किलोमीटर दूर स्थित गोवर्धन पर्वत को देवतुल्य माना जाता है। दूर-दूर से भक्त इस पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। आपको बता दें कि यह वह पर्वत है जिसे भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। इतना ही नहीं गोवर्धन की हर चट्टान में कई रहस्य छिपे हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते होंगे ऐसे में आज हम आपको गोवर्धन की हर चट्टान में छिपे रहस्य से परिचित कराते हैं देखें एक नजर-
बता दें रहस्य और दिव्यता का संहृगम गोवर्धन पर्वत आस्था के उच्चतम शिखर को छू रहा है। वही देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोग इस जगह पर नत मस्तक नजर आते हैं। ब्रज वसुंधरा का यह पवित्र स्थान भगवान कृष्ण के बाल अतीत का साक्षी रहा है। यही नहीं, गिरिराज चट्टानें आज भी कान्हा के बाल अतीत का प्रमाण देती हैं। आपको बता दें इंद्र का मार्ग दर्शन करने वाले कन्हैया की लीला का वर्णन आज भी गिरिराज की शिलाओं पर अंकित है।
गिरिराज पर्वत है श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरुप
धार्मिक इतिहास का गुणगान करता गिरिराज पर्वत श्रीकृष्णा का साक्षात स्वरुप माना गया हैं। वही जतीपुरा के पास लुक लुक दाऊजी मंदिर पर स्थित गिरिराज चट्टानों पर दर्जनों संकेत हैं जो राधाकृष्ण की उपस्थिति को महसूस करते हैं। बालपन में भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज महाराज को ब्रज का देवता बताते हुए इंद्र की पूजा छुड़वा दी जिससे देवों के राजा इंद्र ने क्रोध में आकर मेघ मालाओं को ब्रज बहाने का आदेश दिया। इसके बाद सात दिनों और सात रातों तक मूसलाधार बारिश हुई, लेकिन भगवान कृष्ण ने गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर रखा और ब्रज को डूबने से बचाया। इसके बाद इंद्र कान्हा की शरण में आए। उस समय इंद्र सुरभि गाय और ऐरावत हाथी और गोकर्ण घोड़े को अपने साथ ले आए। कान्हा का मधुर रूप और चितवन को तिरछा देखकर गाय की आकर्षक ममता जाग उठी और उसके थनों से दूध की धारा निकलने लगी। यही नहीं आज भी गिरिराज पर्वत पर दूध की धार का निशान है। इसके साथ ही, गोकर्ण घोड़े और ऐरावत हाथी और सुरभि गाय के पैरों के निशान चट्टानों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। बाल सखाओं के साथ माखन मिश्री खाकर उंगलियों के बने निशान दर्शनीय बने हुए हैं।
गिरिराज शिलाओं में आज भी है श्रीकृष्ण का शेर स्वरुप
बता दें शेर के स्वरुप में आज भी बलभद्र गिरिराज शिलाओं में बैठकर अपनी सरकार चलाते प्रतीत होते हैं। खासकर ब्रजवासी अपनी पीड़ा दाऊ दादा के दरबार में सुनाते हैं और बलभद्र ने किसी को अपने दरबार से खाली हाथ नहीं लौटाया हैं।
गिरिराज शिला से निकलता हैं सिंदूर
आपको बता दें कि आस्था और भक्ति के साथ करोड़ों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इतना ही नहीं जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए सिंदूर गिरिराज शिला से निकलता है। ऐसा माना जाता है कि इस सिंदूर के लगाने से जीवनसाथी की आयु बढ़ती है।
Comments
Add a Comment:
No comments available.