उसके बाद रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद जम्मू के राजा गुलाब सिंह ने लद्दाख के साथ 1842 में एक नया समझौता तैयार किया।
वैसे तो लद्दाख अपने आप में बेहद ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है और अक्सर लोग यहां घूमने आते हैं। लेकिन भारत-चीन सीमा विवाद के बाद से लद्दाख लगातार सुर्ख़ियों में बना हुआ है। लेकिन बीजिंग के इतिहास पर नज़र डाली जाए तो केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख पर बहुत से प्रश्न खड़े हो जाते हैं क्योंकि इतिहास अलग चीज़ें दर्शाता है। इतिहास में तिब्बत से मिले रिकॉर्ड में ऐसा सामने आता है कि लद्दाख में ब्रिटिश शासन और सिख शासन के उल्लेख मिले हैं। उन उल्लेखों से पता चलता है कि लद्दाख पर चीन का नियंत्रण नहीं था। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि चीन के किये हुए सारे दावे गलत हैं।
1954 और 1960 में चीन ने जो एकतरफा सीमाएं बताई थी उन्होंने लद्दाख की उस समय की स्थिति और लद्दाख पर भारत द्वारा नियंत्रण पर भी किसी तरह का सवाल नहीं उठाया। इसके अलावा नई दिल्ली ने भी उन सभी सीमाओं को ख़ारिज कर दिया था जिन्हें चीन ने प्रस्तावित किया था।
विदेश मंत्रालय के स्पीकर झाओ लिजियन द्वारा मंगलवार को बीजिंग में कहा गया था, चीन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को नियंत्रित नहीं करता है। भारत-चीन विवाद के विशेषज्ञों का कहना है कि ये सभी दावे झूठे हैं। तिब्बत और लद्दाख के बीच हुई शांति संधि पर टिंगमोसगंग ने 1684 में हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें स्पष्ट रूप से यह लिखा गया कि तिब्बत और लद्दाख दो अलग-अलग संस्थाएं थीं। संधि के फ़र्स्ट पार्ट में लिखा गया कि यह संधि दलाई लामा और लद्दाख के बीच के संबंधों को स्थापित करती है।
लद्दाख के इतिहास में 1834 में एक बार फिर मोड़ आया जब सिख सेना के प्रमुख जनरल जोरावर सिंह ने लद्दाख के बौद्ध साम्राज्य वाले राज्य को राजा रणजीत सिंह के साम्राज्य में मिला दिया गया था और उसकी राजधानी लाहौर में बनाई गयी थी। वहां के राजा को सिख साम्राज्य का जागीरदार बनाया गया जो कि 20,000 रुपये की वार्षिक श्रद्धांजलि देता था। मुगल शासन के छोटे से काल के अलावा, लद्दाख द्वारा कश्मीर को कभी कोई श्रद्धांजलि नहीं दी गयी।
उसके बाद रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद जम्मू के राजा गुलाब सिंह ने लद्दाख के साथ 1842 में एक नया समझौता तैयार किया। उसके बाद सिख साम्राज्य का पतन 1846 में हो गया और अंग्रेजों का शासन शुरू हो गया। अंग्रेजों ने 1846-47, 65, 73, 99 और 1914 के बीच चीन और तिब्बत के साथ लद्दाख की सीमा को बसाने का लगभग पांच बार प्रयास किया।
लेकिन अंग्रेजों द्वारा किए गए सभी प्रयास फैल हो गए, लद्दाख को हर बार ब्रिटिश साम्राज्य के साथ ही जोड़ा गया। ब्रिटिश सीमाओं को कुछ अलग तरह से विकास किया गया। 1865 में बनाई गई लाइन का प्रस्ताव ब्रिटिश भारत में उस समय के मेजर जनरल जॉन अर्दग और सैन्य खुफिया महानिदेशक डब्ल्यूएच जॉनसन ने रखा था। उसके बाद ब्रिटिश विदेशी कार्यालय ने 1873 में जॉनसन अर्दग के द्वारा प्रस्तावित लाइन के अलावा एक और एक सीमा खींची। बात यहां भी नहीं बानी तो सर क्लाउड मैकडोनाल्ड ने 1899 में चीन को एक और लाइन खींचने का प्रस्ताव दे दिया। जिसे आज के समय में मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 1914 में हुए शिमला सम्मेलन में भी इसी सीमा को प्रस्तावित किया गया।