ज़िला एटा का बिल्सड़ गांव एक एतिहासिक जगह है, अभी हाल ही बिल्सड़ में एतिहासिक महत्व के अवशेष मिले हैं,
ज़िला एटा का बिल्सड़ गांव एक एतिहासिक जगह है, अभी हाल ही बिल्सड़ में एतिहासिक महत्व के अवशेष मिले हैं, बिल्सड़ पुवायां में इन पुरावशेषों पर आबादी बस गयी है. बिल्सड़ गांव टेली पर बना हुआ है अगर इसकी पूरी तरह खुदाई की जाए तो जमीन से इतिहास ही निकलेगा, एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा संरक्षित होने के बावजूद यहां लगातार अवैध कब्जे होते रहे और कई मकान बन गए. अब इनको हटवाने की नियमावली शुरू हो गई है.
गुप्तकालीन अवशेष और बिल्सड़ पुवायां का गढ़ी बाबा टीला को संरक्षित किया था, लेकिन एएसआई और स्थानीय प्रशासन द्वारा इनके संरक्षण पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया. ऐसे में यहां लोग मनमाने ढंग से खुदाई कर कई महत्वपूर्ण शिलाएं आदि ले गए. गांव के लोग बताते है गढ़ी बाबा मंदिर काफ़ी सिद्ध है. और उनके वंशज आज भी गांव में रहते हैं.
गढ़ी बाबा मंदिर की पूरी कहानी
यह मंदिर बिल्सड़ पुवायां में स्थित है, मंदिर का इतिहास काफी पुराना है, ऐसा बताया जाता है कि हज़ारों साल पहले बिल्सड़ में एक राजा अपनी प्रजा के साथ रहने आये थे, राजा बहुत ही जालिम था, एक बार राजा ने अपने ही गांव के एक सिद्ध पुरुष की लड़ाई हाथी से करवा दी थी, लड़ने वाले सिद्ध पुरुष का नाम पूरनमल मिश्रा था, बाबा पूरनमल ने लड़ाई से पहले अपने परिवार अपने वंसजों से कह दिया था कि अगर लड़ाई में उनकी मृत्यु हो जाये तो उनका नील की लकड़ी से अंतिम संस्कार करना, लड़ाई में मृत्यु होने के बाद उनके परिवार वालों ने वैसा ही किया जैसा उन्होंने बताया था. दरअसल हिन्दू धर्म के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि जिनका अंतिम संस्कार नील की लकड़ी से होता है वे प्रेत योनी को प्राप्त होते हैं. प्रीत योनी में जाने के बाद बाबा पूरनमल ने राजा को गांव छोड़ने पर विवस कर दिया और ऐसे गड़ी बाबा ने प्रज्ञा और अपने परिवार की राजा से रक्षा की. जिसके बाद गांव वालों ने टेली पर ही गढ़ी बाबा का मंदिर बना दिया और उनकी पूजा होने लगी. गांव वाले गाड़ी बाबा में बहुत आस्था रखते हैं. बिल्सड़ के पूर्व प्रधान सम्पूर्णानन्द मिश्रा ने गढ़ी बाबा मंदिर के इतिहास के बारे में बताया और बाबा पूरनमल के बारे में भी. प्रधान जी कहा गांव में बसे सभी मिश्रा लोग बाबा पूरनमल के ही वंशज है.
बिल्सड़ का इतिहास
बिल्सड़ गांव का पुराना नाम बैनसार भी था, बिल्सड़ के राजा हरसिंघ भी रहे चुके है, बाबा पूरनमल (गढ़ी बाबा) की मृत्यु के बाद राजा गांव छोड़कर रामपुर में जा बसा. इसलिए रामपुर गांव आज भी राजा का रामपुर गांव के नाम से मशहूर है, रामपुर बिल्सड़ से करीबन 3 किलो मीटर दूर स्थित है.
खुदाई में मिले अवशेष
इस क्षेत्र में ही करीब आधा गांव बस गया. हाल ही में एएसआई ने बिल्सड़ पट्टी में उत्खनन कराया तो 5वीं शताब्दी के गुप्तकालीन मंदिर की सीढ़ियां दिखाई दीं। साथ ही शंख लिपि का एक शिलालेख मिला, जो कि एतिहासिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.