ब्लैक कैट कमांडोज़' या फिर 'NSG कमांडो' मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में काम करने के लिए जाने जाते हैं.
ये भारतीय सेनाओं की अलग अलग बटालियन से चुने हुए जवान होते हैं. ये कमांडोज़ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) का हिस्सा होते हैं.
भारत में आपने अक्सर वीआईपी लोगों की सुरक्षा में लगे 'ब्लैक कैट कमांडोज़' को देखा होगा. ब्लैक कलर की ड्रेस पहने ये कमांडो दुश्मन को सेकंड में धराशायी करने की क्षमता रखते हैं. ये शारीरिक और मानसिक रूप से इतने मज़बूत होते हैं कि 1 'ब्लैक कैट कमांडो' 10 लोगों पर भारी पड़ता है. कई महीनों की कड़ी ट्रेनिंग और अनुशासन के बाद बनता है एक 'ब्लैक कैट कमांडो'.
आइए जानते हैं कि 'ब्लैक कैट कमांडो' यानी 'NSG फ़ोर्स' में शामिल होने के लिए क्या करना पड़ता है और उन्हें कितनी सैलरी मिलती है?
कौन होते हैं 'ब्लैक कैट कमांडोज़'?
ये भारतीय सेनाओं की अलग-अलग बटालियन से चुने हुए जवान होते हैं. ये कमांडोज़ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) का हिस्सा होते हैं. NSG भारतीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली देश की एक स्पेशल आतंकवाद विरोधी इकाई है. इस फ़ोर्स का गठन साल 1984 में किया गया था. देश के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री समेत सभी वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा का ज़िम्मा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के पास ही होता है.
कैसे होता है इन कमांडोज़ का चयन?
अगर इस फ़ोर्स में चयन की बात करें, तो इसके लिए कोई सीधी भर्ती की प्रक्रिया नहीं है. इसके लिए चुनिंदा जवानों का चयन आर्मी और अर्ध सैनिक बलों की रिजीमेंट्स से किया जाता है. इस फ़ोर्स में क़रीब 53 फ़ीसदी जवानों का चयन 'इंडियन आर्मी' से होता है. इसके अलावा 47 फ़ीसदी चयन अर्ध सैनिक बलों सीआरपीएफ़ (CRPF), आईटीबीपी (ITBP), आरएएफ़ (RAF) और बीएसएफ़ (BSF) से किया जाता है.
90 दिन की होती है कठोर ट्रेनिंग
इसकी चयन प्रक्रिया भारतीय सेना की सामान्य चयन प्रक्रिया से एकदम अलग होती है. विभिन्न फ़ोर्स से चुने हुए जवानों को सबसे पहले एक कठिन परीक्षा से गुजरना होता है. जो दरअसल, 1 हफ्ते की कठोर ट्रेनिंग होती है. ये ट्रेनिंग इतनी कठिन होती है कि इसमें 80 फ़ीसदी जवान फ़ेल हो जाते हैं. इस दौरान क़रीब 20 फ़ीसदी जवान ही अगले चरण में पहुंचते हैं. अंतिम राउंड के टेस्ट तक ये संख्या केवल 15 फ़ीसदी ही रह जाती है.
चयन के बाद शुरू होता है सबसे कठिन सफ़र
अंतिम चयन के बाद शुरू होता है, सबसे कठिन दौर. ये पूरे 3 महीने यानी 90 दिनों की ट्रेनिंग होती है. इस दौरान जवानों को फ़िज़िकल और मेंटल ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग दौरान शुरुआत एक कमांडो बनाने के लिए इन जवानों की योग्यता केवल 40 फ़ीसदी तक ही होती है, लेकिन अंत आते-आते ये 90 फ़ीसदी तक पहुंच जाते हैं. इस दौरान इन्हें 'बैटल असॉल्ट ऑब्सक्टल कोर्स' और 'सीटीसीसी काउंटर टेररिस्ट कंडिशनिंग कोर्स' की भी ट्रेनिंग दी जाती है. जबकि सबसे अंत में साइकॉलोजिकल टेस्ट होता है.
क्या काम करते हैं NSG कमांडो
'ब्लैक कैट कमांडोज़' या फिर 'NSG कमांडो' मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में काम करने के लिए जाने जाते हैं. देश में जब भी कोई आतंकी हमला या फिर कोई बड़ी घटना घटती है NSG कमांडो इस दौरान सबसे आगे होते हैं. मुंबई में हुए 26/11 आंतकी हमले के दौरान भी इन्हीं कमांडोज़ ने आख़िर तक मोर्चा संभाला था.
कितनी मिलती है सैलरी 'ब्लैक कैट कमांडो' को?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, NGS कमांडो की मासिक सैलरी 84 हज़ार रुपये से लेकर 2.5 लाख रुपये तक होती है. औसत सैलरी की बात करें, तो ये क़रीब 1.5 लाख रुपये प्रति महीने होती है. इसके अलावा इन्हें कई तरह के भत्ते भी मिलते हैं.
NGS कमांडोज़ 3 तरह की कैटेगरीज़ Special Action Group (SAG), Special Ranger Group (SRG) और Special Composite Group (SCG) में बंटे होते हैं.