तालिबान की नजर में शरिया कानून क्या है और इसने महिलाओं के लिए अफगानिस्तान में रहना कैसे मुश्किल बना दिया है.
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद एक सवाल जो दुनिया भर में सुर्खियों में रहा है कि तालिबान के शासन में महिलाओं की स्थिति क्या होगी. तालिबान ने लगातार उठ रहे एक सवाल के जवाब में कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं को शरिया कानून के तहत रहना होगा और मुस्लिम कानून के तहत ही उन्हें आजादी मिलेगी. लेकिन सवाल यह है कि आखिर शरीयत कानून क्या है, जिसके तहत उसने महिलाओं और लड़कियों से अधिकार छीनने की बात कही है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि तालिबान की नजर में शरिया कानून क्या है और इसने महिलाओं के लिए अफगानिस्तान में रहना कैसे मुश्किल बना दिया है.
शरिया कानून क्या है?
शरिया कानून इस्लाम की कानूनी प्रणाली है, जो कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों पर आधारित है और मुसलमानों की दैनिक दिनचर्या के लिए एक आचार संहिता के रूप में कार्य करता है. यह कानून सुनिश्चित करता है कि वे (मुसलमान) दैनिक दिनचर्या के सभी क्षेत्रों में व्यक्तिगत जीवन में ईश्वर की इच्छा का पालन करें. अरबी में शरिया का अर्थ वास्तव में "रास्ता" है और यह कानून के एक निकाय का उल्लेख नहीं करता है. शरिया कानून मूल रूप से कुरान और सुन्ना की शिक्षाओं पर निर्भर करता है, जिसमें पैगंबर मुहम्मद की बातें, शिक्षाएं और प्रथाएं शामिल हैं. शरिया कानून मुसलमानों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका कितनी सख्ती से पालन किया जाता है.
तालिबान का शरिया कानून
1996 से 2001 तक उनके शासन के दौरान तालिबान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना शरिया कानून के बेहद सख्त नियमों को लागू करने के लिए की गई थी, जिसमें सार्वजनिक पथराव, कोड़े मारना और यहां तक कि समुद्र तट के बाजारों में किसी की हत्या करना शामिल था. इसमें फांसी भी शामिल है. शरिया कानून के तहत तालिबान ने देश में किसी भी तरह के संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस बार भी कंधार रेडियो स्टेशन पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने गाने बजाने पर रोक लगा दी है. वहीं, पिछली बार चोरों के हाथ काट दिए गए थे. साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, तालिबान ने शरिया कानून का हवाला देते हुए अफगानिस्तान में बड़े नरसंहार को अंजाम दिया. वहीं करीब एक लाख 60 हजार लोगों को भूखा रखने के लिए उनके अनाज को जला दिया गया और उनके खेतों में आग लगा दी गई. तालिबान शासन के तहत पेंटिंग, फोटोग्राफी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जबकि किसी भी तरह की फिल्म पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.