गया जिले का सबसे बड़ा अस्पताल पिछले कुछ दिनों से मौत बांट रहा है. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि आरटीआई से मिली जानकारी इस बात की गवाही दे रही है.
गया जिले का सबसे बड़ा अस्पताल पिछले कुछ दिनों से मौत बांट रहा है. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि आरटीआई से मिली जानकारी इस बात की गवाही दे रही है. पिछले 10 महीनों में इस अस्पताल में 5314 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें से 848 मासूम बच्चों की मौत हो गई. हर महीने करीब 85 बच्चों की मौत हो जाती है.
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम
इतनी मौतें तो एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से भी नहीं हुईं, जो बेहद खतरनाक बीमारी है. मरने वाले बच्चों की पारिवारिक पृष्ठभूमि की पड़ताल करते हुए जब कुछ लोगों से बात की गई तो उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब पाई गई. वे मौत पर सिर्फ आंसू ही बहा सकते हैं. हर माह इतनी बड़ी संख्या में मौतें होती रहीं, लेकिन न तो समीक्षा की गई और न ही योजनाओं की जांच की गई.
पौष्टिक भोजन बहुत जरूरी
आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से गरीबों को मिलने वाले पोषण से लेकर उनके कल्याण की तमाम योजनाओं के बावजूद यह स्थिति है. मरने वालों में अधिकतर लोग अनुसूचित जाति से थे. आख़िर उनकी मौत की वजह क्या थी? इस संबंध में जब अस्पताल अधीक्षक व विशेषज्ञों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वायरल बुखार, ब्लड इंफेक्शन समेत अन्य बीमारियां इसकी वजह हैं. बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पौष्टिक भोजन बहुत जरूरी है, लेकिन गरीबी के कारण उन्हें यह पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है.
आर्थिक स्थिति भी काफी दयनीय
औरंगाबाद के अरविंद पासवान की पत्नी नीतू देवी अपने एक साल के बीमार बेटे को लेकर सात सितंबर को अस्पताल पहुंची थीं. उन्हें शिशु रोग विभाग में भर्ती कराया गया था. बच्चे की हालत खराब थी और उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी दयनीय थी. इससे पता चला कि गर्भावस्था के दौरान मां को पोषण नहीं मिला. बच्चे के जन्म के बाद उसे उचित पोषण और इलाज नहीं मिला. इसके तुरंत बाद मृत्यु हो गई.
सांस लेने में दिक्कत
गया के बाराचट्टी की सुगिया देवी अपने पति शंभू मांझी के साथ अपनी चार माह की बेटी के इलाज के लिए 4 सितंबर को अस्पताल पहुंचीं. डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. लड़की बहुत कमजोर थी. अगले ही दिन उनका निधन हो गया. गया के फतेहपुर के रहने वाले नरेश यादव की पत्नी प्रतिमा कुमारी 14 अक्टूबर को अपनी आठ साल की बेटी के साथ पहुंचीं. डॉक्टरों ने बताया कि उनके खून में संक्रमण फैल चुका था, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अगले दिन उनकी भी मौत हो गई.