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चंद्रयान-1 के डेटा का अध्ययन कर रहे अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा आंकड़े यही बता रहे हैं. पृथ्वी के उच्च ऊर्जा इलेक्ट्रॉन चंद्रमा पर पानी बना रहे हैं. चंद्रयान-3 भी पानी की तलाश में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा चुका है. अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रयान-1 से मिले डेटा से पता चलता है कि ये इलेक्ट्रॉन पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं और इनकी वजह से मौसमी प्रक्रियाएं होती हैं.
डेटा का अध्ययन
चंद्रयान 1 में अपने मिशन के दौरान चंद्रमा पर पानी की खोज की है. भारत के इस मिशन से चंद्रमा के बारे में कुछ ठोस जानकारी भी सामने आई. उस मिशन के डेटा का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा की सतह पर बर्फ भी मौजूद है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों तक सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच पाती है और वहां का तापमान -200 डिग्री हो सकता है।
पानी की खोज
चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक सूर्य की रोशनी रहती है। यानि चंद्रमा का 1 दिन पृथ्वी के 28 दिन के बराबर होता है. वैज्ञानिकों की टीम का दावा है कि जब सूरज की रोशनी नहीं होती तो सौर हवा की बौछार होती है. दावा किया जाता है कि इस काल में पानी का निर्माण हुआ था. चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज के लिए चंद्रयान-3 भी भेजा गया है. वैज्ञानिक भाषा में कहें तो प्रोटॉन जैसे उच्च ऊर्जा कणों से बनी सौर हवा चंद्रमा की सतह पर बिखर जाती है, जिससे पानी बनता है.
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