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जानें जन्माष्टमी मनाने का असल रहस्य, सुनकर नम हो जाएगी आंखें

भक्त जन्माष्टमी के रोज़ भगवान श्री कृष्ण की अराधना करते हैं और तरह-तरह की मिठाईयां और पकवान बनाते है और भगवान कृष्ण से अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं।

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By Tarun Yadav | Delhi, Delhi | लाइफ स्टाइल - 12 August 2024

जन्माष्टमी, हिन्दू धर्म का एक ऐसा पर्व है जिसका इंतजार हर कृष्ण भक्त बड़ी बेसबरी से करता है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जन्माष्टमी के दिन मानव रूप में धरती पर जन्म लिया था। उनका ये मनमोहक, चंचल, माखनचोर, मृगनैनी रूप धरती पर श्री कृष्ण के नाम से जाना जाता है। सदियों से लोग मन में प्रेम भक्ति भाव के साथ इस दिन का उपवास रखते आ रहे हैं। साथ ही भक्त जन्माष्टमी के रोज़ भगवान श्री कृष्ण की अराधना करते हैं और तरह-तरह की मिठाईयां और पकवान बनाते है और भगवान कृष्ण से अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म कालकोठरी में हुआ था। दरअसल श्री कृष्ण का कपटी और धूर्त मामा कंस मथुरा का राजा था। जिसने अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव यानी श्री कृष्ण को जन्म देने वाले माता-पिता को कालकोठरी में कैद कर लिया था। श्री कृष्ण के माता- पिता को कैद करने का कारण उनकी शादी के दौरान हुई आकाशाणी की भविष्यवाणी थी। नियति के अनुसार कपटी कंस की बहन का आठवां पुत्र उसके पापों का और उसका सर्वनाश करने के लिए देवकी की कोख से जन्म लेगा। कहीं भविष्यवाणी सच ना हो जाए इस खौफ में कंस ने अपनी ही बहन और बहनोई को कारावास में डाल दिया और उनकी पहरेदारी पर पहरेदार तैनात कर दिए। जैसे ही देवकी और वासुदेव की संतान जन्म लेती पहरेदार कंस को सूचित करते और कंस उनका वध कर देता।

कंस ने की छ: नवशिशुओं की हत्या

कंस ने देवकी के छ: नवशिशुओं की हत्या कर दी। जिसके बाद सातवी संतान बलराम और आठवीं संतान श्री कृष्ण ने जन्म लिया। जिनका वध करने में कंस नाकामयाब रहा और उन दोनों बालकों को स्वर्ग के देवी-देवताओं की मदद से सही सलामत गोकुल गांव के मुखिया नंद और उनकी धर्म पत्नी यशोदा के पास ले जाया गया। दोनों बालकों का पालन पोषण वहीं किया गया। लेकिन कंस ने हार नहीं मानी और लगातार श्री कृष्ण का वध करने के लिए अन्य राक्षसों को गोकुल भेजता गया। लेकिन वो दैत्य वहां से कभी लौटकर वापस नहीं आएं। उन सबको भगवान क्षी कृष्ण के हाथों मुक्ति मिल गई थी। अंत में जब कंस के पापों का घड़ा भर गया तो स्वयं श्री कृष्ण मथुरा पहुंचे और कंस का वध कर अपने मां- बाप को कारावास से रिहा कराकर एक पुत्र होने का फर्ज निभाया।

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