इस फूल के बिना अधूरी मानी जाती है श्राद्ध की पूजा, खुश नहीं होंगे पूर्वज

पितृ पक्ष का सनातन धर्म मे खास महत्व है। 16 दिन पितरों के निमित पूजा-पाठ, श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान आदि किया जाता है। श्राद्ध कर्म करने से वंश वृद्धि, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर
  • 36
  • 0

पितृ पक्ष का सनातन धर्म मे काफी खास महत्व है। 16 दिन पितरों के निमित पूजा-पाठ, श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान आदि किया जाता है। श्राद्ध कर्म करने से वंश वृद्धि, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। श्राद्ध सितंबर के महीने से शुरु हो रहे हैं। वैसे पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने के लिए एक खास तरह के फूल का इस्तेमाल किया जाता है। यदि उसका इस्तेमाल नहीं होता तो श्राद्ध कर्म पूरा नहीं माना जाता है। श्राद्ध मे इस्तेमाल होने वाले फूल का नाम काश है।

इन चीजों का खास ध्यान

श्राद्ध की पूजा बिल्कुल अलग होती है। कुछ चीजों का इसमे खास ध्यान रखना होता है। हर फूल को तर्पण मे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए काश के फूल का इस्तेमाल किया जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध-पूजन में मालती, जूही, चम्पा के अलावा सफेद फूल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही इस बात का भी खास ख्याल रखें कि इस दौरान तुलसी और भृंगराज का भी इस्तेमाल भूलकर न करें।

भूलकर भी न करें इन फूलों का इस्तेमाल

बता दें कि श्राद्ध और तर्पण के दौरान बेलपत्र, कदम्ब, करवीर, केवड़ा, मौलसिरी और लाल -काले रंग के फूलों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितर इन्हें देखकर निराश होकर वापस लौट जाते हैं। ऐसे में इस तरह के फूलों के इस्तेमाल न करें। पितरों के नाराज होने से व्यक्ति के पारिवारिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

RELATED ARTICLE

LEAVE A REPLY

POST COMMENT