गुजरात के छोटा उदेपुर जिले के तीन गांवों में दूल्हे की बहन दूल्हा बनकर विवाह करने पहुंच जाती है।और सिर्फ बारात ही नहीं ले जाती बल्कि दुल्हन के साथ मंडप में 7 फेरे भी लेती है। यह खबर हाल ही में सुर्खियां बन गयी हैं. शादी की रस्मों को निभाते हुए यह जोड़ा दूल्हे के घर लौटता है। अंबाला गांव के हरिसिंग रायसिंग राठवा के बेटे नरेश का विवाह फेरकुवा गांव के वजलिया हिंमता राठवा की बेटी लीला से हुआ। इस परंपरा का अन्य आदिवासी समाज के लोग भी सम्मान करते हैं। इसलिए अंबाला से बारात दूल्हे नरेश की बहन असली ले गई।
कुंवारे हैं देव, इसलिए लड़के बारात नहीं ले जाते
आपको बता दें अंबाला, सूरखेडा और सनाडा गांव के आराध्य देव भरमादेव और खूनपावा हैं। यह आदिवासी समाज के आराध्य देव हैं। और ऐसी मान्यता है कि भरमादेव कुंवारे देव हैं। इसलिए अंबाला, सूरखेडा और सनाडा गांव का कोई लड़का बारात लेकर नहीं जाता। यदि कोई ऐसा करेगा, तो उसे देव का कोपभाजक बनना होता है।
कोप से बचने और गांव-ग्रामीणों को बचाने के लिए दूल्हे की बहन ही बारात लेकर जाती है और 7 फेरे लेती है।
सदियों से है यह परंपरा
अंबाला गांव के ही एक शख्स बेसण राठवा ने बताया कि सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। कुछ साल पहले आधुनिकता को अपनाते हुए तीन युवकों ने परंपरा में बदलाव का प्रयास किया था। लेकिन दुर्भाग्यवश तीनों युवक किन्हीं कारणों से चल बसे। इसलिए परंपराओं के अधीन ही विवाह हमारे गांव-समाज में होते हैं। यह परंपरा खांडु विवाह से मिलती-जुलती है।
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