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इस बार राजनीति की दुनिया में राष्ट्रगान सुर्खियों में बना हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी को बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक पत्र लिखा है। उन्होंने अपने द्वारा भेजे गए पत्र को ट्विटर पर शेयर किया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि राष्ट्रगान जन गण मन को संविधान सभा में सदन का मत मानकर स्वीकार कर लिया गया था।
इसके अलावा उन्होंने पीएम मोदी से ये भी अपील की है कि वह संसद में ऐसा प्रस्ताव लाएं कि जन गण मन की धुन से कुछ छेड़छाड़ किए बैगर इसके शब्दों में कुछ बदलाव किया जाए। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि सुभाष चंद्र बोस द्वारा किए गए बदलाव को ही स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन आइए हम जानते हैं कि जिस राष्ट्रगान को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी बात रखी है उसका क्या है इतिहास और खासियत?
- किसी भी देश का राष्ट्रगान उसके इतिहास और परंपरा को दर्शाता है, उस देश को उसकी पहचान देने का काम करता है।
- भारत का राष्ट्रगान रबिंद्रनाथ टैगोर ने बंगाली में लिखा था।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कलकत्ता सभा में 27 दिसंबर 1911 को ये गाया गया था।
- बाद में 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रगान के तौर पर अपनाया गया था। लेकिन इसे 1905 में बंगाली भाषा में लिखा गया था।
- बंगाली भाषा में लिखे गए राष्ट्रगान को हिंदी में अनुवाद आबिद अली ने किया था और इसे अलहिया बिलावल राग में गाते हैं।
- इसे गाने की अविधि 52 सेकेंड है, लेकिन कई मौके पर इसे 20 सेकेंड में भी गाया जाता है।
- बहुत कम लोगों को पता है कि वंदे मातरम और जन गण मन के बीच 1947 में राष्ट्रगान का चुनाव करने के लिए वोटिंग हुई थी, जिसमें वंदे मातरम को सबसे ज्यादा वोट मिले थे।
- वहीं, आपको बता दें कि प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एकट, 1971 की धारा के मुताबिक यदि कोई राष्ट्रगान में परेशानी खड़ा करता है या किसी को राष्ट्रगान गाने से रोकता है तो उसे तीन साल की कैद या फिर जुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने 1986 के एक मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि कोई राष्ट्रगान का सम्मान करता है लेकिन गाता नहीं तो ये अपराध की श्रेणी में नहीं मना जाता।
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