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हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था. उनका ये सपना था कि जवान और किसान दोनों को बराबरी का सम्मान दिया जाए और उन्हें वो सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए, जिसके वो हकदार हैं. देश इस वक्त तरक्की कर रहा है, लेकिन पीछे रह गए हैं तो वो किसान है. कभी पानी की आपूर्ति से तो कभी बारिश की कमी के चलते उनकी हिम्मत कही न कही टूट जाती है.
यदि किसानों को आधुनिक तरीके से खेती करना सिखाई जाए तो उनके ऊपर मंडरा रहा खतरा कम हो सकता है. ऐसा ही तरीका इन मॉडर्न किसानों ने भी अपनाया. यहां हम बात कर रहे हैं ऐसे किसानों की जो अपनी खेती की तकनीक से न केवल खुद अच्छा कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे लोगों के लिए भी रोजगार का मौका दे रहे हैं.
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1. नागेन्द्र पांडेय
उत्तरप्रदेश के महराजगंज जिले के अंजना गांव के नागेन्द्र पांडेय इस लिस्ट में पहले नंबर पर आते हैं. ग्रेजुएशन के बाद वो 15 साल तक अच्छी नौकरी की तलाश में लगे रहे. नौकरी तो मिली लेकिन तब उन्हें ये समझ आया कि वो नौकरी से कुछ अच्छा और कर सकते हैं. पूंजी के नाम पर उनके पास सिर्फ कुछ पैसे और थोड़ी पुश्तैनी जमीन थी. उन्होंने इसका इस्तेमाल खेती करने पर लगाया. लेकिन उन्हें ये बात पता था कि खेती करने से कुछ भी नहीं मिलने वाला है. ऐसे में उन्होंने अपना दिमाग लगाया. उन्होंने अपनी जमीन के एक हिस्से में जैविक खाद बनाने और दूसरे में जैविक खेती करने का आइडिया दिया. उन्होंने साल 2000 में केंचुओं से वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू कर दिया. उनके पास देखते-देखते केंचुए और जैविक खाद दोनों की मात्रा बढ़ती गई.
जो किसान रसायनिक खाद की कीमतों और उनकी कमी से परेशान थे उन्हें राहत मिल गई. इतना ही नहीं नागेन्द्र ने शहतूत की नर्सरी भी लगा ली. जहां 10 लाख से अधिक पौधे उगते हैं. इस नर्सरी से वो 6 महीने में 25 लाख से अधिक कमा लेते हैं, जिनमें उनकी बचत 15 लाख होती है.
2. विवेक शाह और वृंदा
गुजरात के विवेक शाह और उनकी साथी वृंदा की कहानी भी गजब की है. वो सिलिकॉन वैली में अपना नया घर और बड़े से सैलरी पैकेज को पीछे छोड़ आए और गुजरात के नाडियाड में हाइवे के पास करीब 10 एकड़ जमीन में जैविक खेती करने लगे. उन्होंने अपने खेत गेहूं से लेकर आलू, पपीता, धनिया जैसी फल और सब्जियां उगाने का काम शुरु कर दिया. उन्होंने इस कदम को उठाने से पहले काफी रिसर्च किया और खेती के कई नए तरीको को खोज डाला है. जैसे कि इन्होंने अपने खेत में पानी के टैंक बनवाएं हैं, जिसमें बारिश का 20 हजार लीटर पानी इक्ट्ठा हो सकता है. इतना ही नहीं पानी को साफ करने वाले विशेष पौधे भी उगाए गए हैं. खेती के साथ-साथ विवेक और वृंदा केले के चिप्स का बिजनेस भी करते हैं.
3. प्रमोद गौतम
इस लिस्ट में पूर्व ऑटोमोबाइल इंजीनियर प्रमोद गौतम का भी नाम सामने आया है. इन्होंने 2006 में ऑटोमोबाइल इंजीनियर की नौकरी इसीलिए छोड़ दी थी क्योंकि वो अपनी नौकरी से खुश नहीं थे. इसके बाद वो खेती के काम में उतर आए. उन्होंने अपनी 26 एकड़ जमीन पर खेती करने का फैसला कर लिया. शुरु में जब इन्होंने सफेद मूंगफली और हल्दी की खेती की तो इन्हें फायदा ज्यादा नहीं हुआ. इसका कारण था कि ऐसी खेती में श्रमिकों की ज्यादा जरूरत होती है. इसके बाद प्रमोद ने ऐसे उपकरणों का उपयोग करने के बारे में सोचा जिससे कम श्रमिकों की जरूरत पड़ सकें. जैसे कि ड्राइवर रहित टैक्टर का होना.
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2007-2008 में प्रमोदी ने बागवानी भी शुरु कर दी थी. संतरे, अमरूद, नींबू, मीठे नींबू, कच्चे केले के साथ तूर दाल उगाने लगे. बाद में दालों की अच्छी फसल के चलते प्रमोद ने वंदना नाम से दालों का ब्रांड शुरु कर दिया. आज प्रमोद अपनी दाल के चलते 1 करोड़ सालाना कमाते हैं.
4. सचिन काले
छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर में मौजूद मेधपुर के रहने वाले सचिन काले ने 24 लाख रुपए की सैलरी पर आराम से जिंदगी बिताने की बजाए खेती करने की सोची. सन 2000 में नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से मकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद फाइनेंस में एमबीए और 2007 में डेवलपमेंटल इकनॉमिक्स में पीएचडी करने वाले सचिन को गुडगांव के एक पावर प्लानंट में नौकरी मिल गई. जहां उन्हें 24 लाख की सैलरी मिलती. लेकिन उस नौकरी से वो खुश नहीं थे. इसके बाद उन्होंने खेती करने का अपना मन बनाया. उन्हें फिर ऐसे ही उन्हें कांट्रेक्ट फार्मिंग का आइडिया आया.
सचिन काले ने 2014 में इनोवेटिव एग्रीलाइफ सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी खोल दी. इस कंपनी का काम ये है कि ये किसानों के खेत में खेती करती है. किसान को कुछ नहीं देना होता है. उन्हें फसल की तय कीमत के हिसाब से पैसे मिल जाते है. इतना ही नहीं ऊपर से यदि फसल के दाम बढ़े तो उन्हें फायदा भी मिलता है सो अलग. किसान को स्थिति में लाभ होता है. सचिन ने अपने 25 बीघे खेत में धान और सब्जियों की खेती तक शुरु कर दी है.
5. विश्वनाथ बोबडे
किसानों को भारत में अन्नदाता के नाम से जाना जाता है. उसके द्वारा उठाया गया आत्महत्या का कदम सबसे शर्मनाक होता है. महाराष्ट्र का मराठवाड़ा जिला किसानों की आत्महत्या के लिए ही जाना जाता है. यहां पर 2450 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. इसी जिले का एक इलाका है बीड़ जहां पर 2012 से अब तक 700 से अधिक किसानों को अपनी जान गवानी पड़ी है.
किसानों की इस आत्महत्या के वैसे कई कारण हैं, लेकिन यहां का सूखा इसकी सबसे बड़ी परेशानी है. यहां बारिश न होने की वजह से फसल नहीं सही हो पाती और इससे किसान दुखी होकर आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसे में यहां खेती कर पाना मुश्किल होता है, लेकिन ये काम विश्वनाथ बोबड़े के लिए आसान नहीं है. विश्वनाथ मात्र 5वीं तक पढ़े हैं.
पिता की मौत के बाद उनके परिवार के पास 10 एकड़ जमीन थी. बाद में 6 एकड़ जमीन बेचकर इन्होंने मकान बनवाया. अब 2 एकड़ जमीन सड़क बनने के वक्त इनसे ले ली गई और बकी की बची 2 एकड़ जमीन में से एक ही एकड़ इनके हिस्से में आई. ऐसे में इस तरह के सूखाग्रस्त इलाके में विश्वनाथ भाल ऐसा क्या बोते जिससे इनका घर चल पाता? उन्होंने दूसरों के खेतों में मजदूरी की और उससे जमा पैसों से बीज को खरीदा.
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