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सुशासन V/S सियासत: मेरा भाषण ही मेरा शासन है, आम जनता का राशन है...

इस वक्त यूपी का हाथरस रेपकांड सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। सरकार बनाम मीडिया की लड़ाई में इस केस ने इतना तूल पकड़ा कि पीएम मोदी तक को यूपी के सीएम योगी से बात करनी पड़ी। सच दिखाने की होड़ में मीडिया ने इतनी सनसनी फैलाई कि ...

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By Insta News | खबरें - 12 October 2020

मोदी सरकार के जब तीन साल पूरे हुए थे, उस समय ट्विटर पर एक हैशटैग काफी ट्रेंड कर रहा था। #भाषण_ही_है_शासन। मेरा भाषण ही मेरा शासन है, आम जनता का राशन है। यह बात तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में कही और लिखी जा रही थी। लेकिन इस वक्त यह नारा देश भर में सटीक लागू होता है। आजकल सरकारें अपने सुशासन से नहीं, बल्कि भाषण कला से चल रही हैं। देश हो या राज्य, हर सरकार काम कम करती है, बयान ज्यादा जारी करती है। बोलने की व्याकुलता में इतनी बह जाती है कि उसे अपने मूल कर्तव्यों तक का ख्याल नहीं रहता। सत्ता में बैठे लोग यह भूल जाते हैं कि देश लच्छेदार भाषण से नहीं, बल्कि अच्छे शासन से चलता है।


इस वक्त यूपी का हाथरस रेपकांड सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। सरकार बनाम मीडिया की लड़ाई में इस केस ने इतना तूल पकड़ा कि पीएम मोदी तक को यूपी के सीएम योगी से बात करनी पड़ी। सच दिखाने की होड़ में मीडिया ने इतनी सनसनी फैलाई कि सरकार ने इसे अपनी 'इज्जत' मान ली और रेप केस को झूठा साबित करने पर तुल गई। इस केस के लिए जरूरी कदम उठाने की बजाए पीड़िता और उसके परिवार को ही दोषी ठहराया जाने लगा। पहले लालच दी गई, फिर धमकी। यहां तक कि फोरेंसिक रिपोर्ट के हवाले से यह साबित कर दिया गया कि लड़की के साथ रेप हुआ ही नहीं था। इसे आपसी झगड़ा बताया गया। जबकि सच्चाई ये है कि इस मामले में पुलिस से कई बार शिकायत की गई थी।


पीड़िता ने जो बयान दिया था, उसमें उसने साफ कहा कि उसके साथ एक बार नहीं कई बार ज्यादती की गई थी। उसे बहुत पहले से परेशान किया जाता रहा। जबरदस्ती की जाती रही। यहां तक की जिस रोज उसकी इज्जत लूटकर उसपर जानलेवा हमला हुआ, जीभ काटी गई, रीढ की हड्डी तोड़ दी गई, उस दिन भी पुलिस ने मामले का गंभीरता से संज्ञान नहीं लिया। यदि पुलिस ने समय रहते इस मामले में कार्रवाई की होती, तो यह इतना बड़ा नहीं होता। लेकिन समस्या पैदा होने से रोकने की बजाए, उसे बड़ा बनाकर उससे लड़ने की आदी हो चुकी पुलिस को शायद ये बात तब समझ में नहीं आई। पुलिस और प्रशासन की ऐसी ही चूक का विपक्ष हमेशा से फायदा उठाता रहा है।



यह पहली बार नहीं है कि यूपी में कानून-व्यवस्था इतना बड़ा मुद्दा बना हो। इससे पहले भी मायावती और अखिलेश के शासन काल में रेप और मर्डर जैसी बड़ी घटनाएं सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनीं, तब विपक्ष में बीजेपी सहित दूसरी पार्टियां रहीं, इनका भी वही रोल रहा, जो आज कांग्रेस, सपा और बसपा का है। कहने का तात्पर्य ये है कि सरकार बदल जाती है। राजनीतिक दलों के पाले बदल जाते हैं, लेकिन मुद्दा हमेशा वही बना रहता है। 'यूपी में जंगलराज कायम' यह हेडलाइन हर सरकार के कार्यकाल में इस्तेमाल होता है।


सुशासन के दावों पर सरकार बनाने वाले सियासी दल सत्ता में आने के बाद ठीक वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं, जैसे उनसे पहले की सरकारों ने किया होता है। एनसीआरबी के आंकड़ों पर नजर डालें तो हैरानी होती है। डर लगता है। अपराध कम होने की बजाए, लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। पिछले साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के करीब चार लाख मामले सामने आए। हर दिन करीब 87 केस रेप के दर्ज हुए हैं। साल 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में 7.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। अकेले यूपी, जहां बीजेपी की सरकार है, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध के 60 हजार केस सामने आए हैं। वहीं, राजस्थान, जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां रेप के सबसे ज्यादा 5,997 केस दर्ज किए गए हैं।


राज्य बदल जाते हैं, सरकार बदल जाती है, जगह बदल जाती है, समय बदल जाता है, नाम बदल जाता है, सियासी दलों का रोल बदल जाता है, लेकिन नहीं बदलते हैं हालात, ये घटनाएं कमोबेश वैसी होती रहती हैं। राजस्थान में रेपकांड हो तो बीजेपी वही करेगी और बोलेगी, जो यूपी में कांग्रेस इनदिनों कर रही है। दिलचस्प तो तब हुआ जब हाथरस रेप केस को लेकर जिस वक्त यूपी में बवाल चल रहा था उसी समय राजस्थान के जयपुर और सीकर में रेप के मामले सामने आए। इसे लेकर एक तरफ राजस्थान में बीजेपी उग्र प्रदर्शन कर रही थी, तो यूपी में राहुल और प्रियंका गांधी मोर्चा खोले हुए थे। दोनों तरफ से बयानबाजी जारी थी। लेकिन किसी का भी मुद्दे को हल करने पर फोकस नहीं है। 


पूरे देश में हर तरफ कोरी सियासत जारी है। जनता नाउम्मीद हो चुकी है। जाए तो कहां जाए। करे तो क्या करे। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, विकास आदि-आदि मुद्दों पर बनने वाली सरकारें मंदिर-मस्जिद, जाति-मजहब के फेर में उलझ जाती हैं। अपराध रोकने की बजाए, अपराधियों का संरक्षण करने लगती हैं। आम आदमी हर बार की तरह, बार-बार ठगा जाता है। उसे सुशासन के नाम पर हर बार भाषण मिलता है। इसे सुनते-सुनते वह एक दिन दुनिया से चला जाता है, जारी रहती है तो सियासत, सिर्फ सियासत।


लेखक:- मुकेश कुमार गजेंद्र (कंटेंट एडिटर, इंस्टाफीड)

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