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हमारा देश भारत आज जो कुछ भी है वो हर किसी के योगदान के चलते है, चाहे यहां बात जवानों की करें या फिर हमारे बड़े-बुजुर्गों की. भारत में कई महिलाएं ऐसी रही है, जिन्होंने न केवल सिर्फ रूढ़िवादी सोच को तोड़ने का काम किया बल्कि अपने अधिकारों के लिए कड़ी मेहनत करके इतिहास तक बनाया है. उनकी में से एक है शीला दावरे. 80 के दशक में जब पुणे की सड़कों पर केवल पुरुष ही सड़कों पर ऑटो चलाया करते थे, तब शीला सलवार कमीज पहनकर अपना ऑटो लेकर निकल पड़ती थी. कई सारी परेशनियों के बावजूद उन्होंने खुद को देश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर के तौर पर स्थापित करने का काम किया है.
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शीला के लिए ये काफी मुश्किल भरा पल था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हर मुसीबत का सामना डटकर किया. आखिरकार उन्होंने अपना खुद का ऑटो ले ही लिया. इसके बाद शीला ने कभी भी मुड़कर नहीं देखा और वो हमेशा अपनी लाइफ में आगे बढ़ती रही हैं. इसी सफर में उनकी मुलाकात हुई शिरीष से, जोकि शीला की तरह ही ऑटो चलाते थे. शिरीष आगे चलकर शीला के पति बने थे. दोनों की अब दो बेटियां भी हैं. 2001 तक दोनों अलग-अलग ऑटो चलाते थे. फिर उन्होंने ये तय किया कि वो साथ मिलकर ये काम करेंगे. इसी के आधार पर दोनों ने अपनी ट्रेवल कंपनी खोल ली. साथ ही शीला महिलाओं को ड्राइविंग करने तक के लिए प्रोत्साहित करती हैं और महिलाओं के लिए ड्रॉइविंग एकेडमी भी खोलने का सपना अपनी आंखों में सजा कर रखे हुए हैं.
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