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नस्लवाद ये शब्द सुनने में जितना छोटा है न उससे कई ज्यादा इसने अमेरिका के रुढिवादी और पिछड़ेवादी समाज से बुरी तरह जोड़ा हुआ है। आए दिन अमेरिका में इस शब्द को लेकर कई लोगों की जान जाते हुए और प्रदर्शन करते हुए लोगों को देखा जाता है। फिर भी इस शब्द से निकली आग अमेरिका को जलाने का काम लगातार कर रही है। यहां हम सिर्फ अमेरिका का नाम इसलिए ले रहे हैं क्योंकि इससे जुड़े ज्यादातर मामले अमेरिका में घटते हुए नजर आए हैं। लेकिन इस बार भारत तक इसकी आग पहुंच गई है।
दरअसल प्रसिद्ध उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला के परिवार के साथ नस्लभेदी व्यवहार किया गया है। उनके साथ अमेरिका के वॉशिंगटन में ये घटना घटी और इस बात की जानकारी लोगों को खुद उनकी बेटी अनन्या बिरला ने सोशल मीडिया के जरिए दी। उन्होंने इस घटना को लेकर कई ट्वीट किए। एक ट्वीट में उन्होंने बताया कि स्कोपा इटैलियन रुट्स नाम के एक रेस्टोरेंट ने मेरे साथ-साथ मेरे परिवार को परिसर से बाहर निकालने का काम किया। जोकि बेहद ही नस्लभेदी है और साथ ही दुखी करने वाला है। उन्होंने बताया कि इस तरह का व्यवहार बिल्कुल भी ठीक नहीं है। उन्होंने बताया कि पहले तो खाने के लिए उन्हें 3 घंटे इंतजार किया और उसके बाद वहां के एक वेटर का उनकी मां के साथ भी काफी खराब बर्ताव हुआ। इसके अलावा अनन्या की मां नीरजा बिरला ने भी इस घटना को लेकर अपने ट्वीट में जिक्र किया।
क्या है नस्लवाद?
ये सवाल हर किसी के मन में उठता है कि आखिर इस शब्द के मायने क्या है जो पूरे देश में सम्मान, भाईचारे और व्यक्तिगत अधिकारों का हनन करता है। तो इस मामले में डिस्मेंटलिंग रेसिज्म वर्क्स नाम का एक संगठन है जोकि अमेरिका में इसके खिलाफ काम करने का काम करता है। उनका ये मानना है कि जो नस्लवादी जो है वो पूर्वाग्रह के अलावा नफरत और भेदभाव नस्लवाद से अलग होता है। इसके तीन आयाम है जोकि निम्न तरह से दिए गए हैं-
-सांस्कृतिक
-संस्थानिक
- व्यक्तिगत
सांस्कृतिक नस्लवाद की यदि बात की जाए तो उदाहरण के लिए हम इसे ऐसे समझ सकते है कि गोरे लोगों की जो भी मान्यताएं, मूल्य और धारणाएं बनी हुई है वो ही आम धारणा है। वहीं, इस संदर्भ में काले लोगों की मान्यताएं मायने ही नहीं रखती है। उन्हें पूरी तरह से नकार दिया जाता है। संस्थान का ये भी कहना है कि जब इस तरह की सोच को संस्थान द्वारा बढ़ावा दिया जाता है तो इससे नस्लवाद एक तरह से संस्थानिक हो जाता है।
अमेरिका में नस्लवाद
अमेरिका तो इस नस्लवादी की जकड़ में बुरी तरह से आया हुआ है, जिसकी कोई हद नहीं। 16वीं सदी का वो वक्त था जब अफ्रीकियों को लाकर उनसे वहां पर गुलामी करने का काम किया जाता था। गुलामी की इस प्रथा पर नजर डाली जाए तो वो 370 साल पूरानी है। आपको ये जानकारी हैरानी होगी कि 18वीं सदी के बाद भी भले ही अमेरिका को आजाद मिल गई लेकिन गुलामों की जिंदगी वैसे ही कोरे पन्नों की तरह बनी रही। इस मामले ने इतना भयंकर रूप ले लिया की गृहयुद्ध ही अमेरिका में छिड़ता हुआ नजर आया। इसके बाद अमेरिकी संसद द्वारा 1865 में एक कानून पास किया गया। उसके चलते गुलामी की जो प्रथा चली आ रही थी वो खत्म हो गई और करीब 40 लाख से ज्यादा अफ्रीकन गुलामी के चंगुल से आजाद हुए।
लेकिन हकीकत इन सबसे बिल्कुल अलग थी। इस परेशानी से सामाजिक तौर पर आजादी लोगों को नहीं मिल पाई थी। पहले ही तरह ही अमेरिकी खुद को अफ्रीकी और काले लोगों से ऊंचा समझने का काम करते थे। इसी के चलते अमेरिका के अंदर कई राज्यों में एक स्लेव पेट्रोल नाम की टोली या फिर यूं कहे की संगठन निकला करते थे जोकि इस बात का ध्यान रखा करते थे कि कहीं किसी जहां अफ्रीकी लोगों के खिलाफ विरोध या फिर प्लानिंग तो नहीं हो रही या फिर उन्हें परेशान तो नहीं किया जाता था।
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि करीब डेढ़ सौ सालों बाद तक अफ्रीकी अमेरिकियों को सम्मान या फिर प्यार नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। अश्वेतों को उनका अधिकार न मिले इसके लिए कई राजनीति खेली गई है। यानी कि एक ऐसा कानून तक बनाया गया था कि सिर्फ पढ़े लिखे या टैक्स देने वाले लोग वोट कर सकते है वरना नहीं।
इस घटना ने जब अमेरिका को हिलाया
26 मई 2020 को अमेरिका के मिनेपोलिस शहर में जॉर्ज फ्लॉयड नाम के एक व्यक्ति को पुलिस ने धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार कर दिया गया था। इस दौरान एक पुलिस अधिकारी ने सड़क पर अपने घुटने के बल से फ्लॉयड की गर्दन को लगभग 8 मिनट दबाए रखा था। इस दौरान वो लगातार गुहार लगाता रहा लेकिन पुलिस ऑफिसर ने बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई। बाद में फ्लॉयड ने कुछ भी हरकत करना बंद कर दी और उसे अस्पताल लेकर गए जहां उनकी मौत हो गई। इस चीज को लेकर जबरदस्त तरीके से लोगों ने अमेरिका में विरोध प्रदर्शन किया था।
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