कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के तेजी से बढ़ते मामले चिंता बढ़ा रहे हैं. ब्रिटेन के बाद अमेरिका में भी ओमिक्रॉन ने पहली मौत का कारण बना है. वहीं, भारत में अब तक ओमिक्रॉन के 170 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. वहीं, दक्षिण अफ्रीका से मिले शुरुआती आंकड़ों से यह माना जा रहा था कि कोरोना का ओमिक्रॉन वेरिएंट डेल्टा से कम गंभीर नहीं है. हालांकि, एक नया अध्ययन इस दावे का खंडन करता है. यूके की एक स्टडी के मुताबिक, ओमिक्रॉन वेरिएंट डेल्टा से कम खतरनाक नहीं है.
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ओमिक्रॉन पर यूके का नया अध्ययन
यह अध्ययन इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है. इसमें ओमिक्रॉन से संक्रमित 11,329 लोगों की तुलना कोरोना के अन्य रूपों से संक्रमित 200,000 लोगों से की गई. अध्ययन में कहा गया है, "इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ओमिक्रॉन डेल्टा से कम गंभीर है." ये तुलना मरीजों के लक्षणों और अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या के आधार पर की गई है.
ओमिक्रॉन पर टीके का प्रभाव
अध्ययनों के अनुसार, यूके में उपलब्ध टीकों में से 0% से 20% का दो खुराक के बाद 0% से 20% और ओमिक्रॉन के लक्षणों वाले रोगियों में बूस्टर खुराक के बाद 55% से 80% प्रभाव होता है. रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि डेल्टा की तुलना में ओमिक्रॉन में पुन: संक्रमण का 5.4 गुना अधिक जोखिम है. स्वास्थ्य कर्मियों के अनुसार, SARS-CoV-2 के पहले संस्करण ने 6 महीने में दूसरे संक्रमण से 85% तक सुरक्षा प्रदान की. शोधकर्ताओं का कहना है कि 'ओमिक्रॉन दोबारा संक्रमण से बचाव को 19 फीसदी तक कम कर देता है.
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शुक्राणुओं की संख्या पर प्रभाव
शोधकर्ताओं ने पाया है कि कुछ लोगों के लिए, शुक्राणु की गुणवत्ता COVID-19 से ठीक होने के बाद भी महीनों तक खराब रहती है. शोधकर्ताओं ने पाया कि वीर्य स्वयं संक्रामक नहीं था. 35 पुरुषों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि कोरोना से ठीक होने के एक महीने बाद उनके शुक्राणुओं की गतिशीलता में 60 प्रतिशत और शुक्राणुओं की संख्या में 37 प्रतिशत की कमी आई. अध्ययन फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी में प्रकाशित हुआ है. कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता और शुक्राणु की विशेषताओं के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया. शोधकर्ताओं का कहना है कि गर्भवती होने की इच्छा रखने वाले जोड़ों को चेतावनी दी जानी चाहिए कि कोविड-19 संक्रमण के बाद शुक्राणु की गुणवत्ता कम हो सकती है.
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