इस कोरोनाकाल में बढ़ते कहर के बीच हर वो शख़्स जिसमें इंसानियत बची है वह किसी ना किसी माध्यम से लोगों की मदद करने में जुटा हुआ है. ऐसे ही लोगों के कारण आज इंसानियत जिंदा है. वही इंसानियत के नियमों का पालन करते हुए आंध्र प्रदेश के एमबीए डिग्री होल्डर भरत राघव ने ऐसा काम किया है जोकि किसी तारीफ से कम नहीं हैं. जिसमें इस घातक स्थिति में कोरोना से मरने वालों शवों के अंतिम संस्कार की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है.
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एमबीए होल्डर हैं भरत
अन्य राज्यों की तरह, कोरोना ने भी आंध्र प्रदेश में अपना पैर पसार लिए है कोरोना संक्रमण के तेजी से बढ़ने के साथ-साथ यहां लोगों की मृत्यु दर भी बढ़ी है. ऐसे में वे लोग जिन्हें कोरोनाकाल ने हमसे छीन लिया उनके शवों को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान तक ले जाने के लिए ना एंबुलेंस मिलती है और ना मदद के लिए कोई आगे आता है. इस तरह, शवों को श्मशान में ले जाना और उनका अंतिम संस्कार करना बहुत मुश्किल है. ऐसी स्थिति में, राजमहेंद्रवरम में रहने वाले भारत राघव एक देवदूत के रूप में सामने आए है. भरत ने अब जिम्मेदारी ली है कि वह कोविड के कारण मारने वाले लोगों का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करेंगे.
110 से ज्यादा शवों का किया दाह संस्कार
27 वर्षीय एमबीए होल्डर भारत राघव ने अपने दोस्तों के साथ अब तक 110 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया है. भरत मरने वाले धर्म के अनुसार मृतकों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था करते हैं. यही नहीं भरत ने जो कुछ भी सहा है वह औरों को सहने नहीं देना चाहते. वास्तव में, भरत ने अपने पिता को खो दिया है. उनका कहना है कि जब वह पढ़ाई करते थे तो उस दौरान उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया. उस समय, परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि वह उनके शव को विशाखापत्तनम से राजमहेंद्रवरम लाया जा सके. इस वजह से, उसके पिता के शव का अंतिम संस्कार पूरे एक दिन की देरी से हुआ. अंतिम संस्कार तक उनके पिता का शव लावारिसों की तरह ही पड़ा रहा था. इस घटना ने भरत की आत्मा को हिलाकर रख दिया था.
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कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार में मदद करने का किया फैसला
इस घटना के बाद ही भरत ने फैसला किया कि वह हर उस व्यक्ति के अंतिम संस्कार में मदद करेंगे, जिसका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है या शवों को श्मशान तक ले जाने वाला कोई नहीं है. यह एक ऐसा युग है जब रिश्तेदार, पड़ोसी या करीबी रिश्तेदार उसकी मृत्यु के बाद किसी के अंतिम संस्कार के लिए आगे नहीं आ रहे हैं. कोरोना का डर लोगों में फैल गया है. भरत ने इस संबंध में अपने कुछ दोस्तों से बातचीत कर यह फैसला किया कि वह ऐसे शवो के अंतिम संस्कार को सम्मान सहित पूरा करेंगे. अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए, भरत खुद शवों को श्मशान में लाने के लिए वाहनों, पीपीई किट और श्मशान का सारा खर्च वह सभी खुद उठाते हैं. भरत और उनके दोस्तों ने इस महान कार्य को अपना मिशन बना लिया है और अब वे इसे पूरा करने में लगे हुए हैं.
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