सिर को चूल्हा बनाकर लगाते हैं आग फिर पकाते हैं चावल, जानिए किस गांव में होली की रात होता है ऐसा अनुष्ठान

गोवा से चौंका देने वाली खबर सामने आई है जहां अवे में श्री मल्लिकार्जुन देवता के तीन मंदिर, कानाकोना में श्रीस्थल और गाओडोंगरी में होली के दौरान हर दो साल में वीरमेल और शीशरन्नी मनाया जाता है.

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गोवा से चौंका देने वाली खबर सामने आई है जहां अवे में श्री मल्लिकार्जुन देवता के तीन मंदिर, कानाकोना में श्रीस्थल और गाओडोंगरी में होली के दौरान हर दो साल में वीरमेल और शीशरन्नी मनाया जाता है.

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भक्तों के सिर चूल्हे की तरह प्रयोग किए जाते हैं

आपको बता दें कि, शिशर्णी अनुष्ठान में भारी भीड़ जुटती है. तीन भक्तों के सिर पर रखे मिट्टी के बर्तन में पकाए जाने वाले चावल का अनुष्ठान देखने के लिए भक्तों की भीड़ लगती है. तीनों भक्तों के सिर चूल्हे की तरह प्रयोग किए जाते हैं. बीच में आग लगाई जाती है और उसमे चावल पकाए जाते हैं.

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आदिवासी पुरुष करते हैं लोक नृत्य

अचरज की बात तो यह है की इस अनुष्ठान में भक्तों को कुछ नहीं होता है. कानाकोना की आदिवासी बस्तियां खाली हो जाती है. जंगली पहाड़ियों में एक आश्रय में आदिवासी वेलिप पुरुष लोक नृत्य करते हैं और अपने पूर्वजों द्वारा मनाई गई प्रथाओं की पुनरावृत्ति में मितव्ययी शाकाहारी भोजन खाते हैं. वीरामेल में पारंपरिक पोशाक पहने और तलवार लेकर नाचने वाले भक्त बारात निकालते हुए घर-घर जाते हैं. कृषि प्रधान आदिवासी क्षेत्रों में, होली को शिग्मो के रूप में मनाया जाता है.

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