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रंगों का त्योहार होली: इतिहास, परंपराएं और उल्लास से भरा पर्व

होली भारत का एक प्राचीन और रंगों से भरा त्योहार है, जिसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार आपसी प्रेम, सौहार्द और भाईचारे को बढ़ावा देता है। जानिए होली का इतिहास, परंपराएं और इसके धार्मिक महत्व के बारे में।

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By Shraddha Singh | Delhi, Delhi | खबरें - 05 March 2025

रंगों का त्योहार होली: प्रेम, उमंग और उल्लास का पर्व

होली भारत के सबसे रंगीन और हर्षोल्लास से भरे त्योहारों में से एक है। यह पर्व आपसी प्रेम, भाईचारे और सौहार्द को दर्शाता है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है और इससे एक दिन पहले होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। इस साल होलिका दहन 13 मार्च और रंगवाली होली 14 मार्च 2025 को मनाई जाएगी।

रंगों की होली: उमंग और उत्साह का पर्व
होली के दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल, रंग, अबीर लगाते हैं और पानी की पिचकारियों और गुब्बारों से खेलते हैं। इस दौरान घर-घर गुझिया, मालपुआ, ठंडाई और विभिन्न पकवानों की महक फैल जाती है। यह दिन मिलने-मिलाने और सभी गिले-शिकवे भुलाने का दिन भी माना जाता है।


होली का प्राचीन इतिहास: धरती से पहले देवलोक में खेली गई थी होली

होली का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसका उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। मान्यता है कि होली सबसे पहले धरती पर नहीं, बल्कि देवलोक में खेली गई थी।

भगवान शिव और कामदेव की कथा:
हरिहर पुराण के अनुसार, संसार की पहली होली भगवान शिव ने खेली थी। यह कथा प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति से जुड़ी है।

जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर गहरी तपस्या में लीन थे, तब तारकासुर का वध करने के लिए देवताओं ने कामदेव से अनुरोध किया कि वे शिवजी की समाधि भंग करें। कामदेव ने रति के साथ नृत्य और प्रेम बाणों का प्रयोग किया, जिससे शिवजी की समाधि टूट गई। इससे क्रोधित होकर शिवजी ने अपनी तीसरी आंख से कामदेव को भस्म कर दिया।

रति के विलाप और प्रायश्चित के बाद, शिवजी को उस पर दया आ गई और उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। इस खुशी में रति और कामदेव ने ब्रज मंडल में ब्रह्म भोज का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं ने भाग लिया। रति ने चंदन का टीका लगाया और यही परंपरा होली में गुलाल लगाने के रूप में प्रचलित हो गई।


संगीत, नृत्य और रंगों के संग होली का उत्सव

इस ब्रह्म भोज के दौरान भगवान शिव ने डमरू बजाया, भगवान विष्णु ने बांसुरी की मधुर धुन छेड़ी, माता पार्वती ने वीणा के सुरों से वातावरण को मधुर बनाया, और देवी सरस्वती ने बसंत ऋतु के गीत गाए।

इस तरह फाल्गुन पूर्णिमा के दिन संगीत, नृत्य और रंगों के उत्सव के रूप में होली मनाने की परंपरा शुरू हुई।


देवी-देवताओं को पहले अर्पित किया जाता है रंग

इसी कारण होली खेलने से पहले देवी-देवताओं को गुलाल, अबीर या रंग अर्पित करने का विधान है। पहले होलिका दहन किया जाता है, जिसमें बुराई का अंत और अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक संदेश छिपा होता है। इसके बाद होली के दिन शिवलिंग पर भस्म चढ़ाना शुभ माना जाता है और फिर रंगों से होली खेली जाती है।

होली: प्रेम और उल्लास का संदेश देने वाला त्योहार

होली न केवल रंगों और खुशियों का पर्व है, बल्कि यह आपसी प्रेम, भाईचारे और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने वाला पर्व भी है। यह त्योहार नकारात्मकता को दूर कर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाता है। होली के दिन सभी लोग भेदभाव मिटाकर एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं, जिससे रिश्तों में नई ऊर्जा और स्नेह का संचार होता है।

इस बार होली को और भी खास और रंगीन बनाएं, सभी को प्रेम और खुशियों के रंगों से सराबोर करें। 🌸🎨🎊

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