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कुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। यह मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित होने वाला है। महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में किया जाता है।
हिंदु
पौराणिक ग्रंथो में कुंभ का अर्थ अमरता (अमृत) और मेला का अर्थ स्थान पर मिलना बताया गया है। इस प्रकार
कुंभ मेले का शाब्दिक अर्थ अमृत का मेला बताया गया है। कुंभ मेले में स्नान करना
स्वर्ग दर्शन माना जाता है इसलिए लाखों श्रध्दालु, सादु-संत
इस पवित्र स्थान पर स्नान करने के लिए आते हैं।
कुंभ मेले का इतिहास?
महाकुंभ मेले का इतिहास
बहुत पुराना माना गया है। कुछ हिंदु ग्रंथो में इसका वर्णन देखाने को मिलता
है।माना जाता है कि सतयुग में पहला महाकुंभ मेले का आयोजन शंकराचार्य ने कि थी।
वहीं कुछ
कथाओं में बताया गया है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से ही किया जा रहा है जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि महांकुभ
कुछ हजारों साल पुराना है। महाकुंभ के इतिहास का वर्णन पौराणिक 600 ईपू - बौद्ध शिलालेखों में भी मिलता है जहां इसे नदी मेले की
उपस्थित दी गई है।
सबसे पहला महाकुंभ
हिंदु
धर्म की पौराणिक कहानी के मुताबिक समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला, तो देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई होने लगी तब भगवान विष्णु ने
मोहिनी अवतार लेकर अमृत कलश को इंद्र भगवान के पुत्र जयंत को सौंपा। सारे दानव जंयत के पीछे पड़ा
गए। जब जंयत अमृत कलश लेकर भागे तो अमृत कलश से कुछ बूंदे धारती के चार स्थानों पर
गिरी- प्रयागराज, उज्जैन, नासिक,
हरिद्वार ये वो चार स्थान है जहां कुंभ के मिले का आयोजन किया जाता
है।
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