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जानिए, मिर्जापुर और सेक्रेड गेम्स जैसी वेब सीरीजों के कामयाब होने की 10 बड़ी वजहें

मिर्जापुर, सेक्रेड गेम्स, पाताल लोक, आश्रम, भौकाल और दी फैमिली मैन जैसी वेब सीरीज का इंतजार दर्शकों को हमेशा रहता है।

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By Insta News | मनोरंजन - 14 October 2020

जो आया है, वो जाएगा भी। बस मर्ज़ी हमारी होगी...वेब सीरीज मिर्जापुर 2 का यह डायलॉग इनदिनों हर किसी के जुबान पर है। इस वेब सीरीज का ट्रेलर लॉन्च होते ही कालीन भैया का जादू सबके सिर चढ़कर बोलने लगा है। अब लोगों को बेसब्री से इंतजार है तो 21 अक्टूबर का, जिस दिन मिर्जापुर 2 अमेजन प्राइम पर रिलीज होगी। मिर्जापुर, सेक्रेड गेम्स, पाताल लोक, आश्रम, भौकाल और दी फैमिली मैन जैसी वेब सीरीज का इंतजार दर्शकों को हमेशा रहता है। सही मायने में मिर्जापुर और सेक्रेड गेम्स ने ही ओटीटी प्लेटफॉर्म की दुनिया से लोगों का परिचय कराया। दर्शकों का मनमोह लिया। बड़े पर्दे से निकलर सिनेमा जब मोबाइल में समाया, तो इसकी सफलता पर शक था, लेकिन अपने कंटेंट की बदौलत इसने एक नई दुनिया बना ली।


आइए समझते हैं कि मिर्जापुर जैसी वेब सीरीजों के कामयाब होने के पीछे की असली वजह क्या है...


1- कंटेंट: डिजिटल मीडियम में एक मशहूर कहावत है, 'कंटेंट इज किंग'। यानी कंटेंट ही प्रमुख है। यदि आपके कंटेंट में दम है, तो आपको कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता। मिर्जापुर और सेक्रेड गेम्स जैसी वेब सीरीजों के जरिए दर्शकों के सामने अनोखा कंटेंट परोसा गया। एक ऐसा कंटेंट, जो लोगों के प्रत्यक्ष तो है, लेकिन पहले कभी स्क्रीन पर नहीं देखा गया। ऐसे कंटेंट को स्क्रीन पर देखने को रोमांच अलग होता है। वेब सीरीज निर्माताओं ने कंटेंट को अपना मजबूत बेस बनाया है। आउट ऑफ बॉक्स जाकर सब्जेक्ट सलेक्शन और उसी के अनुसार ट्रीटमेंट इनकी सफलता की सबसे बड़ी वजह है।


2- स्क्रिप्ट और सब्जेक्ट सेलेक्शन: मिर्जापुर यूपी में स्थित एक शहर का नाम है। इस शहर की पृष्ठभूमि पर दिखाई गई कालीन भैया, मुन्ना त्रिपाठी, गुड्डू भैया और बबलू भैया की कहानी ऐसे रची गई, जैसे हमारे आसापास की घटना हो। इस पात्रों और घटनाओं से दर्शक जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। यूपी और बिहार के हर शहर में एक कालीन भैया जैसा बाहुबली होता है। इस फेरहिस्त में विजय दुबे, अतीक अहमद, शहाबुद्दीन, मुख्तार अंसारी, अनंत सिंह, बृजेश सिंह का नाम शामिल है। इनकी दंत कहानियां हर कोई सुन चुका है और देख रहा है। ऐसे में जब स्क्रीन पर दर्शक इनको देखते हैं, तो खुद को इन पात्रों से कनेक्ट कर लेते हैं। अपनी शानदार स्क्रिप्ट और वास्तविक पृष्ठभूमि की वजह से ऐसी वेब सीरीज लोगों के दिलों पर राज करती हैं।


3- रोमांच और सस्पेंस: वेब सीरीज मिर्जापुर में सस्पेंस तो नहीं है, लेकिन रोमांच बहुत है। सस्पेंस इसलिए नहीं क्योंकि आगे की कहानी दर्शकों को लगभग पता हो जाती है। मुन्ना त्रिपाठी जब गुड्डू और बबलू की बहन को उठाकर ले जाता है, तो सबको पता होता है कि वो उसके साथ कुछ गलत नहीं करेगा। क्योंकि वह अपनी गलती का अंजाम जानता है। इसी तरह आखिरी सीन में जब मुन्ना बबलू और स्वीटी को गोली मार देता है, तो यह साफ होता है कि अगली सीरीज में गुड्डू भैया इसका बदला जरूर लेगा। मिर्जापुर 2 के ट्रेलर में यह दिख भी जाता है। बदले की ये आग गोलू के दिल में भी बराबर भड़क रही है। जहां तक रोमांच की बात है, तो ये मिर्जापुर में कूट-कूट कर भरा हुआ है। याद कीजिए वो सीन जब शादी समारोह में मुन्ना बबलू पर बंदूक ताने हुए है। सबकी आंखें बंद हैं। धड़कने तेज हैं। लेकिन लोग जैसे ही आंखें खोलते हैं, धांय से गोली चल जाती है। 


4- रियलिस्टिक अप्रोच: बॉलीवुड में बनने वाली फिल्में पहले हैप्पी एंडिंग पर ज्यादा ध्यान देती थीं। क्योंकि दर्शक 'अंत भला, तो सब भला' ही चाहता था। पहले फिल्मों के जरिए एक ऐसा कल्पना लोक रचा जाता, तो वास्तविकता से परे होता था। लेकिन बाद की फिल्मों ने ये दायरा तोड़ा। फिल्मों में अंत भी दुखद होने लगा। हीरो की मौत भी होने लगी। हीरो-हिरोइन बिछड़ने भी लगे। वेब सीरीज ने कल्पना के संसार से निकलकर एक वास्तविक दुनिया बनाई, जहां सबकुछ वैसा ही दिखाया जाता है, जैसा होता है। सेक्स के समय दो कबूतर या फूल मिलने की जगह रियल सेक्स दिखाया जाता है। गोली मारने के बाद केवल खून के छींटे नहीं उड़ते, मांस के लोथड़े भी निकलते दिखाई देते हैं। इसी तरह गाली-गलौज भी खूब होती है।


5- कलाकारों का चयन: किसी भी फिल्म या वेब सीरीज में कलाकारों का चयन बहुत अहम होता है। पहले फिल्मों में कैरेक्टर लगभग तय होते थे। वेब सीरिज ने इस अवधारणा को भी तोड़ा है। याद कीजिए ‘पाताल लोक’ के हाथीराम चौधरी को, एक इंस्पेक्टर कैसे सड़े-गले सिस्टम को दर्शकों को सामने उधेड़ कर रख देता है। पाताल लोक में जयदीप अहलावत, दी फैमली मैन में मनोज वाजपेयी, सेक्रेड गेम्स में सैफ अली खान का हो या मिर्जापुर में पंकज त्रिपाठी, अली फैजल, विक्रांत मैसी का किरदार, कहानी में इन कलाकारों ने जान डाल दी है। इनकी अदाकारी इनके वेब सीरीज में सोने पर सुहागा है।


6- डायलॉग डिलीवरी: मिर्जापुर में कालीन भैया कहते हैं, 'जो आया है, वो जाएगा भी, बस मर्जी हमारी होगी। गद्दी पर चाहे हम रहें या मुन्ना, नियम सेम होगा।' तो मुन्ना त्रिपाठी कहते हैं, 'हम एक नया नियम एड कर रहे हैं, मिर्ज़ापुर की गद्दी पर बैठने वाला कभी नियम बदल सकता है।' पंकज त्रिपाठी और दिव्येंदु शर्मा जैसे कलाकारों की जबरदस्त डायलॉग डिलीवरी ही इस वेब सीरीज को सनसनीखेज बनाती है। यही वजह है कि इनके डायलॉग लोगों के जुबान पर चढ़ चुके हैं। 


7- हर कलाकार हीरो होता है: फिल्मों में एक हीरो, एक हिरोइन और एक विलेन होता है। लेकिन वेब सीरीजों में हर कलाकार हीरो होता है। उसकी अपनी पहचान होती है, जो उस वेब सीरिज की जान होती है। फिल्मों में तो कई कैरेक्टर जबरन घुसा दिए जाते हैं, कुछ कॉमेडी के नाम पर, तो कुछ आइटम सॉन्ग के नाम पर, लेकिन वेब सीरीजो में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। मिर्जापुर की ही बात करते हैं। इसमें जितने अहम कालीन भैया है, उतना ही अहम उनकी पत्नी और पिता का रोल है। 


8- छोटे शहर के बड़े सपने: किसी ने सच कहा है कि छोटे शहर में अक्सर बड़े सपने पल रहे होते हैं। सपना तो हर कोई देखता है, लेकिन पूरा कुछ लोग ही कर पाते हैं। जिंदगी की आपाधापी के बीच सपने अक्सर दब जाते हैं। यही सपने जब वेब सीरीज के किसी कैरेक्टर के अंदर दिखाई देते हैं, तो अपनापन महसूस होता है। उसकी जय और पराजय में खुद की सफलता और सफलता दिखती है। दर्शक उनसे जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि यह कहानी किसी पात्र विशेष की नहीं, बल्कि उनकी खुद की है।

 

9- सेंसरशिप नहीं है:  वेब सीरीज पर अभी तक किसी तरह की सेंसरशिप नहीं है। यही वजह कि यहां सबकुछ दिखाया जाता है। सबकुछ दिखाने की यही छूट उनको वास्तविक दुनिया रूबरू करवाने का मौका देती है, तो वहीं लोगों की दबी भावनाओं को कुरेदने का भी। हमारे समाज में सेक्स होता तो है, लेकिन छुपकर, ऐसे ही देखा भी जाता है, लेकिन छुप-छुपाकर। इन वेब सीरिजों के जरिए सेक्स और कॉमेडी के कॉकटेल को ऐसे परोसा जाता है कि दर्शक इसके एडिक्ट हो जाते हैं। इसका नशा हर बार उन्हें उसकी तरफ खींच ले जाता है।


10- बेहतर तकनीकी का इस्तेमाल: आजकल वेब सीरीजों में फिल्मों से भी बेहतर और एडवांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इतना ही नहीं मोबाइल पर इसकी उपलब्धता इसको और लोकप्रिय बना रही है। यह माध्यम न सिर्फ पोर्टेबल है बल्कि यह इस बात की तसल्ली भी करता है कि दर्शक को उसकी पसंद का कंटेंट वाजिब दाम में मिल जाए।


लेखक:- मुकेश कुमार गजेंद्र  (कंटेंट एडिटर, इंस्टाफीड)

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