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एक खलनायक, एक स्टार, एक संन्यासी और एक राजनेता विनोद खन्ना, जिन्हें "मर्सिडीज बेचने वाले साधु" और स्वामी विनोद भारती के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने 70 साल की उम्र में कैंसर से हार मानी ली थी और उनका निधन हो गया था। 6 अक्टूबर 1946 को एक्टर का जन्म पेशावर, ब्रिटिश भारत में (जोकि अब पाकिस्तान में है) एक कपड़ा, रंजक और रसायन के बिजनेसमैन किशचंद खन्ना और कमला के पंजाबी परिवार में हुआ था। बाद में भारत के विभाजन के समय उनका परिवार बंबई चला गया था।
2002 में अपने एक पूराने इंटरव्यू में विनोद खन्ना ने कहा था, “हम बॉम्बे पहुँचे, जहाँ मेरे पिता का ऑफिस था। शुरू में हम दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ रहे। मैं शिक्षकों का पसंदीदा और एक अच्छा छात्र था। 1957 में जब मैं छठी कक्षा में था तब हम दिल्ली चले गए थे।' बोर्डिंग स्कूल में रहते हुए मुगल-ए-आज़म को देखने के बाद उन्हें मोशन पिक्चर्स से प्यार हो गया। सिडेनहैम कॉलेज से कॉर्मस की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने अपने फिल्मी करियर को शुरू किया।
ऐसे की अपनी रिटायरमेंट की घोषणा
बॉलीवुड में सबसे अच्छे दिखने वाले एक्टर्स में से एक के रूप में विनोद खन्ना दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गए और कई सारे लीड रोल में नजर आए। लेकिन आध्यात्मिकता के लिए उनके प्यार ने जल्द ही उनका स्टार्डम खो दिया। उस युग के बारे में बात करते हुए जब बी-टाउन एक्टर ने कहा, ‘मैं हमेशा से एक खोजी रहा हूं। फिल्म इंडस्ट्री में मेरे पास पैसा था, ग्लैमर था, शोहरत थी, लेकिन अब आगे क्या? शुरु में मैंने हर हफ्ते पुणे में ओशो के आश्रम का दौरा किया करता था। मैंने शूटिंग का शेड्यूल भी पुणे शिफ्ट कर दिया था। आखिर में जब मैंने 31 दिसंबर, 1975 को जब फिल्मों से अपने रिटायरमेंट की घोषणा की, तो किसी ने भी मुझ पर विश्वास नहीं किया। "
संन्यासी के रूप में अपने बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मैं ओशो का माली था। मैं उन कुछ भारतीयों में से एक हूं, जिन्होंने अमेरिका में बने शहर रजनीशपुरम में ओशो के साथ रहना शुरू किया था। मैंने ओशो के साथ चार साल बिताए। मैं उसका माली था, मैंने टॉयलेट साफ किया, मैंने बर्तन साफ किए और उनके कपड़े मेरे ऊपर आज़माए गए क्योंकि हम शारीरिक रूप से एक ही कद के थे। '
जब ओशो को कहा न
अपने आध्यात्मिक ब्रेक के अंत के बारे में बात करते हुए विनोद खन्ना ने कहा, “मैं बॉलीवुड में वापस चला गया। फिल्मों में वापसी करना आसान हिस्सा था। यहां अमेरिका में मैं अपने गुरु को छोड़ रहा था, जो लगभग असंभव-सा निर्णय था, इतना मैं ओशो से जुड़ा हुआ था। उन्होंने मुझे पुण आश्रम चलाने के लिए कहा, लेकिन मैंने माना कर दिया। यह मेरे जीवन में अब तक का सबसे कठिन किसी को नहीं कहना था। आइए आपको बताते हैं विनोद खन्ना के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में यहां।
1. पुलिस के रोल के लिए लोकप्रिय होने से पहले विनोद खन्ना, जो अपने अलग स्टाइल और व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कई फिल्मों में एक डकैत के रूप में अपनी काफी छाप छोड़ी है। विलेन बने हीरो विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की 1968 में आई फिल्म मन का मीत में एक विलेन का किरदार निभाया था। इसके बाद वो सर्पोटिंग और छोटे-मोटे किरदार फिल्म पूरब और पाश्चिम, सच्चा झूठा, आन मिलो सजना और मस्ताना में निभाते हुए नजर आए थे।
2. मेरा गाँव मेरा देश (1971) के लिए धर्मेंद्र ने खुलासा किया कि विनोद खन्ना ने वास्तव में असली का खून बहाया था।
3.विनोद खन्ना को आखिर में अपने हुनर का विस्तार करने का अवसर तब मिला जब गुलज़ार ने उनकी काबिलियत पर ध्यान दिया और उन्हें मेरे अपने (1972) और अचानाक (1973) में लीड रोल में कास्ट किया।
4. 1973 में एक्टर विनोद खन्ना ने अचनाक फिल्म में रणजीत खन्ना का रोल निभाया था जिसे फैंस ने काफी ज्यादा पसंद किया। फिल्म एक ऐसे नौसेना कमांडर पर बनी थी जिसने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या की कोशिश की थी।
5. विनोद खन्ना हमेशा रिस्की और ऑफ बीट रोल करना भी पसंद करते थे। अरुणा विकास की शेक (1976) में हत्या संदिग्ध के रुप में उन उनके किरदारों को लोग ने काफी ज्यादा पसंद किया था।
6. 1971-1982 के बीच एक्टर ने एक और एक ग्याराह, हेरा फेरी, खून पसीना, अमर अकबर एंथनी, ज़मीर, परवरिश और मुकद्दर का सिकंदर जैसी 47 मल्टी हीरो फिल्मों में काम किया।
7. 1980 में विनोद खन्ना को फिल्म कुर्बानी तब मिली जब अमिताभ बच्चन ने इसे करने से इनकार कर दिया। बाद में ये फिल्म साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी।
8. विनोद खन्ना अपने शानदार करियर के चरम पर होने के बावजूद फ़िल्मों से संन्यास लेने वाले पहले बी-टाउन हीरो बन गए थे। आध्यात्मिक संतुष्टि की उनकी खोज उन्हें ओशो के पास ले गई।
9. 1997 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने के बाद, 'अभिनक बने नेता' विनोद खन्ना ने राजनीति में भी अपनी जगह बना ली। उन्होंने लोकसभा में चार बार पंजाब की गुरदास संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में विदेश राज्य मंत्री बने।
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