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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन, मेक्सिको और कनाडा के खिलाफ भारी इंपोर्ट टैरिफ लगाए जाने के बावजूद, कच्चे तेल की कीमतों पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव न होने की संभावना है। हालांकि, हाल ही में तेल के दामों में कुछ वृद्धि हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह असर स्थायी नहीं रहेगा। ओपेक देशों ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला लिया, जिसमें उन्होंने अप्रैल से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की घोषणा की। इसके अलावा, ओपेक ने अमेरिकी कंट्रोल और निगरानी से तेल उत्पादन को बाहर रखने का भी निर्णय लिया है।
इस फैसले के बाद, यह साफ हो गया है कि ट्रंप का टैरिफ अटैक उतना प्रभावी नहीं होगा, जितना पहले अनुमानित किया गया था। गोल्डमैन सैश जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी कच्चे तेल की कीमतों में दीर्घकालिक उछाल की संभावना को नकारा किया है और ब्रेंट क्रूड के फोरकास्ट में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है। WTI क्रूड ऑयल के यूस को तीन प्रतिशत तक सीमित रखा गया है।
ओपेक देशों के इस कदम को एक सकारात्मक दिशा के रूप में देखा जा रहा है, जो कच्चे तेल की आपूर्ति में किसी भी संभावित बाधा को दूर करने में मदद करेगा। इसके अलावा, अमेरिका ने ओपेक देशों से तेल उत्पादन बढ़ाने की अपील की थी ताकि रूस की तेल आय को नियंत्रित किया जा सके, जो यूक्रेन से जारी युद्ध के लिए वित्तीय संसाधन जुटा रहा है। हालांकि, ओपेक ने अमेरिकी अनुरोध को मानते हुए उत्पादन बढ़ाने का फैसला लिया है, लेकिन यह देशों ने इस संबंध में किसी भी डेटा को साझा करने से मना कर दिया है।
अगले कुछ महीनों में ओपेक देशों का यह निर्णय तेल बाजार में स्थिरता लाने में मदद कर सकता है और वैश्विक महंगाई की चिंता को कुछ हद तक कम कर सकता है। हालांकि, यह देखना होगा कि मार्च के अंत तक इस फैसले को आधिकारिक रूप से लागू किया जाता है या नहीं। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद जो आर्थिक अस्थिरता का खतरा महसूस हो रहा था, ओपेक का यह कदम एक राहत प्रदान कर सकता है।
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