Hindi English
Login

स्वेज नहर से निकाला गया विशालकाय जहाज, जानिए क्या है इसके पीछे का गहरा इतिहास

एवर ग्रीन शिप को स्वेज नहर से मिला जा चुका है. जानिए क्या है इस नहर का इतिहास और इसके चलते कैसे हजारों मजदूरों की गई थी जान.

Advertisement
Instafeed.org

By Deepakshi | व्यापार - 31 March 2021

मिस्त्र के स्वेज नहर (Suez Canal) में लगा जाम आखिरकार अब जाकर खुल गया है. लाल सागर और भूमध्य सागर के बीच इस छोटे लेकिन काफी खास जलमार्ग में एक एवर ग्रीन (Ever Green Ship) नाम का जहाज तिरछा होकर फंस गया था. इसके चलते  ये मार्ग पिछले सात दिनों से बंद था. इस मार्ग के बंद होने की वजह से नहर के दोनों छोर पर सैकड़ों जहाज और फंस गए थे. आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इस स्वेज नहर के चलते हर घंटे 2900 करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा था. इसका मतलब ये कि जब ये रास्ता खुला था तब अरबों का फायदा हो रहा था. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि स्वेज नहर प्राकृतिक नहीं बल्कि इंसानों द्वारा खोजा गया है. 

इस नहर का सबसे पहले ख्वाब देखने वाले शख्स का नाम नेपोलियन बोनापार्ट है. एक नहर के चलते तो एक युद्ध तक छिड़ने वाला था.  मिस्त्र पर हमले के बाद इसका सपना नेपोलियन ने सोचा था. इस काम के लिए उसने सर्वेयर की एक टीम को भेजा था, लेकिन उनकी गलत कैलकुलेशन के चलते नेपोलियन ने इस पर काम नहीं किया. 

(ये भी पढ़ें-अपने फेवरेट डायरेक्टर संजय लीला भंसाली से नाराज हैं दीपिका पादुकोण, गंगूबाई बनी वजह!)

हजारों मजदूरों की हुई बीमारी के चलते मौत

1854 में फ्रांस के एक राजनयिक फर्डिनांड डि लेसेप्स ने स्वेज नहर की प्लानिंग बनानी शुरु की थी. इसके लिए उन्होंने फ्रेंच सरकार से वित्तीय मदद तक ली और मिस्त्र में ऑटोमन साम्राज्य के वाइसराय से इजाजत तक ली. 1859 में फिर उन्होंने स्वेज नहर कंपनी का निर्माण किया. इसके लिए बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत थी. मिस्त्र की सरकार ने गरीब मजूदरों को कम मजदूरी के साथ-साथ डर के सहारे उनसे काम निकलवाया. हजारों की संख्या में मजदूर कॉलरा जैसी बीमारियों की वजह से जान भी गवा बैठे थे.

स्वेज नहर की क्या है कीमत?

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट का कहना है कि इस नहर को बनाने में 100 मिलियन डॉलर का खर्चा आया था. आज उसके कीमत की बात की जाए तो वो 1.9 बिलियन डॉलर होगी. 

क्यों महत्वपूर्ण है स्वेज नहर?

इस नहर से रोजना 30 फीसदी वैश्विक कंटेनर जहाज का आवागमन लगा रहता है. यदि एवर गिवेन के जल्दी नहीं निकाला जाता तो दुनिया का धंधा मंदा पड़ सकता था. इतना ही नहीं तेल बाजार, शिपिंग और कंटेनर की दरें भी काफी ज्यादा प्रभावित होती.  उसकी लोकेशन उसकी सबसे बड़ी वजह है. यही वजह है कि यूरोप के समंदर को अरब सागर, हिंद महासागर  और एशिया- पैसिफिक के देशों से जोड़ती है. 

(ये भी पढ़ें-दुनिया का सबसे 'पावरफुल' है ये 'पावर बैंक', स्मार्टफोन के साथ लैपटॉप को भी करता है चार्ज)

पहले भी हुआ था स्वेज संकट

स्वेज नहर 1956 में एक ऐसे संकट का केंद्र बिंदु बनी थी, जिसकी वजह से मिस्त्र पर हमला हो गया था.1956 में मिस्त्र के करिशमाई राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. स्वेज नहर कंपनी में ज्यादातर शेयर ब्रिटिश और फ्रेंच सरकार के थे. ऐसे में नासिर के इस कदम से दोनों देशों में काफी बवाल मच गया था.

इस परेशानी का असर ये हुआ था कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एंथनी इडन को इस्तीफा देना पड़ा था. पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने किसी देश में पीसकीपिंग सेना भेजी थी. 1957 में स्वेज संकट खत्म होने के बाद नहर को मिस्त्र के नियंत्रण में छोड़ दिया था.

Advertisement
Advertisement
Comments

No comments available.