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उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध जब काशी की बात आती है, तो सबसे पहले दिमाग में वहां के भव्य और ऐतिहासिक मंदिर ही दिमाग में आते है, लकिन सबसे खास और लोकप्रिय मंदिर जिसके बारे में शायद आपने नहीं सुना होगा, वाराणसी में स्थित भारत माता मंदिर. यह मंदिर आजादी की लड़ाई में अहम् योगदान रखता है, 1918 ईस्वी में भारत से अंग्रेजों को भागने की बात चल रही थी उस समय क्रन्तिकारी आंदोलन के तहत इस मंदिर की स्थापना का लक्ष्य रखा गया. अंग्रेजों की अधीनता में दबे भारतीय लोगों ने इस भव्य मंदिर की परिकल्पना की और उन दिनों करीब 10 लाख रूपये की लागत से राष्ट्ररत्न शिव प्रसाद गुप्त जी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था, मालवी जी और अन्य लोगों की प्रेरणा से ये मंदिर बनाकर जब 1918 में तैयार हुआ तो इस मंदिर का स्वरूप देने के लिए संगमरमर पर भारत का पूरा नक्शा बनाया गया हैं. इस मंदिर का उद्घाटन महात्मा गांधी ने 1936 में किया था. जिन दिनों अंग्रेज हिंदुस्तानियों के देशप्रेम की चर्चा तक सुनना पसंद नहीं करते थे, उस वक़्त देशप्रेम का भव्य स्मारक खड़ा करना और ये मंदिर बनाना बहुत रिस्की था. लेकिन शिव प्रसाद गुप्त जी ने ये कर दिखाया, यह मंदिर देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावनाओं को दर्शाता है.
ऐसा बताया जाता है कि शिवप्रसाद गुप्त को इस अद्वितीय मंदिर के निर्माण की प्रेरणा पुणे स्थित कर्वे आश्रम में मिट्टी से बने भारत माता के भूचित्र से मिली थी. जिसके पश्चात् उन्होंने एक मानचित्र का मंदिर कशी में बनवाने की इच्छा प्रकट की, शिल्पी दुर्गाप्रसाद को संगमरमर पर भारत माता उकेरने का कार्यभार सौपा गया था, जिसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत और योग्यता से अपनी जिम्मेदारी निभाई. मंदिर की लंबाई और चौड़ाई 31 फुट 2 इंच और 30 फुट 2 इंच है. इसे बनाने में 11-11 इंच के 762 टुकड़े और कुछ और छोटे-मोटे टुकड़े काम में लाए गए हैं.
मैप में उत्तर में पामीर पर्वत शिखरों से लेकर दक्षिण में सिंहल द्वीप के दक्षिणी छोर तक और पूर्व में मौलमीन तथा चीन की प्रसिद्ध प्राचीन दीवार कहकहा से लेकर पश्चिम में हेरात तक का नक्शा दिखाया गया है. भारत वर्ष के साथ ही इसके समीपवर्ती अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, भोट जिसका नाम अब तिब्बत कर दिया गया है, ब्रह्मादेश जिसे अब म्यांमार के तब्दील कर दिया गया है, सिंहल यानि (लंका) और मलाया प्रायद्वीप का हिस्सा भी दर्शाया गया है.
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