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आज तृणमूल कांग्रेस का 23वां स्थापना दिवस है। इस खास मौके पर पश्चिम बंगाल की सीएम और इस पार्टी की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सभी कार्यकर्ताओं को बधाई दी है। इस पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1988 के दिन तत्कालीन सत्तारूढ़ वाम मोर्चे को सत्ता से बाहर निकालने को लेकर हुई थी। इस मौके पर आइए जानते हैं कि कैसे ये पार्टी अस्थित्व में आई और अब विपक्ष पार्टी के सामने खड़ी हुई है।
26 साल तक कांग्रेस का हिस्सा रहने के बाद सीएम ममता बनर्जी ने इससे अलग होकर अपनी खुद की पार्टी की स्थापना की थी। ये पार्टी दिसंबर 1999 के मीड में चुनाव आयोग की तरफ से पंजीकृत की गई थी। वहीं, 2 सितंबर 2016 को टीएमसी को एक राष्ट्रीय के राजनीतिक दल के तौर पर पूरे देश में मान्यता दी गई थी।
गठन होने के ये थे अहम कारण
सीएम ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर अप्रैल 1996-97 में सीपीएम की कठपुतली होने का इलजाम लगाया था, जिसका परिणाम ये रहा कि 1997 में कांग्रेस से वो अलग हो गई। लेकिन इसके अगले ही साल 1 जनवरी 1988 को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की स्थापना हुई। साथ ही वो पार्टी की अध्यक्ष भी बनी थी। वहीं, लोकसभा के जो 1998 में चुनाव हुए थे उसमें टीएमसी ने 8 सीटों पर कब्जा किया था।
नंदीग्राम आंदोलन
2006 में दिसंबर के महीने में हल्दीया डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा नंदीग्राम के लोगों को नोटिस दिया था कि नंदीग्राम के बड़े हिस्से को जब्त कर लिया जाएगा और 70 हजार लोगों को उनको घर से बाहर निकाल दिया जाएगा। इसके खिलाफ लोगों ने आवाज उठाना शुरु की और इस आंदोलन का नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस ने किया था।
2011 में चर्चा के अंदर रहा ये नारा
ममता बनर्जी द्वारा गढ़ी गई पार्टी का नारा मां, माटी, मानुष है। 2011 के विधानसभा के वक्त ये नारा पश्चिम बंगाल में काफी जबरदस्त तरीके से लोकप्रिय हुआ था। बाद में इसी शीर्षक के साथ ममता ने एक पुस्तक भी लिखी थी।
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