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जलियांवाला बाग की वो दर्दनाक घटना, जिसके बारे में सुनकर खड़े हो जाएंगे आपके रोंगटे

खौफनाक घटना को अंजाम देने का काम अंग्रेजी अफसर जनरल डायर ने जलियांवाला बांग में इस घटना को अंजाम दिया था। इसके बाद से ही अंग्रेजों के शासनकाल के अंत की शुरुआत हुई थी।

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By FARHEEN NAAZ | खबरें - 12 April 2023

13 अप्रैल का दिन भारत में भूलाए नहीं जा सकता है। ये इतिहास का सबसे काला दिन मना गया है। इस दिन सन 1919 को बैसाखी वाले दिन 1 हजार निहत्थे भारतीयों को गोलियों से भून दिया गया था। जब भी इसके बारे में बात की जाती है तो हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस खौफनाक घटना को अंजाम देने का काम अंग्रेजी अफसर जनरल डायर ने जलियांवाला बांग में इस घटना को अंजाम दिया था। इसके बाद से ही अंग्रेजों के शासनकाल के अंत की शुरुआत हुई थी। इस दिन हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था, लेकिन इस घटना के बाद से जब भारतीयों में जो आग उठी तो सीधे ब्रिटिशों को इस देश से बाहर निकाल दिया।

इसमें मुख्य रूप से ऊधम सिंह थे। जिन्होंने सबसे पहले ब्रिटिशर्स के खिलाफ आवाज उठाई। धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया। जलियांवाला बाग में रॉलेट एक्ट को लेकर 13 अप्रैल 1919 को सभा हो रही थी, जिसका काफी विरोध हो रहा था। उसी दिन बैसाखी थी। इस जगह से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर अमृतसर का प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर था। वहां पर मेला लगा हुआ था, जहां पर कई लोग अपने परिवार वालों के साथ पहुंचे थे। वहां पर जनरल डायर अपनी फौज को लेकर वहां पहुंच गए और बिना किसी जानकारी के वहां मौजूद लोगों पर गोलियां चला दी। 

ऊधम सिंह के अंदर जली आग

उस जगह एक कुआं भी था, जिसमें कूदकर अपनी जान बचाने की उन्होंने कोशिश की थी। लेकिन बावजूद इसके सभी लोग मारे गए। जनरल डायर रॉलेट एक्ट के विरोध के खिलाफ ये सख्त कदम उठाया गया था। ताकि लोग ऐसा करने से पहले डर जाएं। लेकिन जनरल डायर को इसकी सजा मिली और उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा। पूरी दुनिया में इस घटना की काफी अलोचना हुई। भारत के दबाव के चलते सेक्रेटारी ऑफ स्टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए एक कमीशन बनाया। जिसमें जनरल डायर के खिलाफ जांच की गई। उनका पद कम कर कर्नल बना दिया। ऊधम सिंह के अंदर एक आग जल गई थी। सैंकड़ों लोगों की मौत का बदला लेने के लिए वो लंदग चले गए। वहां पर उन्होंने कैक्सटन हॉल में जनरल डायर को गोली मारकर हत्या कर दी थी। 31 जुलाई 1940 को फिर ऊधम सिंह को फांसी की सजा दी गई। आज भी उन्हें शहीद के तौर पर जाना जाता है।

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