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भारत की बर्फीली चोटियों के बीच स्थित रूपकुंड झील रहस्यमयी कहानियों के लिए जानी जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां लंबे समय से मानव हड्डियां बिखरी हुई हैं. बता दें कि रूपकुंड झील समुद्र तल से 5000 मीटर की ऊंचाई पर है. यह झील हिमालय की तीन चोटियों के बीच है, जो त्रिशूल जैसी दिखने के कारण त्रिशूल के नाम से जानी जाती है. त्रिशूल की गिनती भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में होती है, जो उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में आती है. रूपकुंड झील को कंकाल झील भी कहा जाता है क्योंकि इसके चारों ओर कई कंकाल बिखरे हुए हैं.
क्या है इन कंकालों की कहानी?
तो इसके पीछे कई कहानियां हैं. एक कहानी एक राजा और रानी की कहानी, जो सदियों पुरानी है. इस सरोवर के पास नंदा देवी का मंदिर भी है. नंदा देवी पर्वतों की देवी हैं. ऐसा माना जाता है कि एक राजा और रानी ने अपने दर्शन के लिए पहाड़ पर चढ़ने का फैसला किया, लेकिन वे अकेले नहीं गए. वे नौकरों को अपने साथ ले गए. रास्ते भर हंगामा होता रहा. यह देख देवी क्रोधित हो उठीं. उनका क्रोध बिजली के रूप में उन सब पर गिरा और वे वहीं मर गए. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि कंकाल उन्हीं लोगों के हैं जो किसी महामारी के शिकार हुए थे. कुछ लोग कहते थे कि यह सेना के जवान थे जो बर्फ़ीले तूफ़ान की चपेट में आ गए थे. इन कंकालों को पहली बार 1942 में एक ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड ने देखा था. उस समय यह माना जाता था कि ये जापानी सैनिकों के कंकाल थे जो द्वितीय विश्व युद्ध में वहां जा रहे थे और वहीं फंस गए थे.
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