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कानपुर में मिला 5 फीट लंबे पंखों वाला दुर्लभ गिद्ध, लोगों ने बुलाई वन विभाग की टीम

गिद्ध को कानपुर के चिड़ियाघर में रखा गया है. इस बात की तह तक जाने की कोशिश की जा रही है कि ये गिद्ध इस इलाके में कहां से आया. एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया, 'ये गिद्ध यहां एक सप्ताह से था.

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By विपिन यादव | खबरें - 10 January 2023

देश में गिद्ध की अधिकांश प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. लेकिन रविवार को उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक दुर्लभ सफेद गिद्ध मिला है जिसे देख लोगों के होश उड़ गए. इसे स्थानीय लोगों ने पकड़ लिया. हलांकि बाद में लोगों ने इसे वग विभाग की टीम को सौंप दिया. इस गिद्ध की प्रजाति खत्म होने के कगार पर है. 

1 सप्ताह से इलाके में है गिद्ध

समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर के कर्नलगंज के ईदगाह कब्रिस्तान में ये दुर्लभ हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध  को पकड़ा गया. बताया जा रहा है कि वह करीब एक हफ्ते से इलाके में है. इस गिद्ध के पंख 5-5 फीट के हैं, लोगों ने जैसे ही इसे देखा इसके साथ फोटो लेने की होड़ लग गई.

वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल

इस गिद्ध का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इसमें स्थानीय लोगों को इस पक्षी को पकड़े हुए और उसके पंख को पकड़कर फैलाते हुए देखा जा सकता है. इस दुर्लभ पक्षी की एक झलक पाने और उसके साथ तस्वीरें लेने के लिए कई लोग जमा हो गए थे.

कानपुर के चिड़ियाघर में रखा गया

गिद्ध को कानपुर के चिड़ियाघर में रखा गया है. इस बात की तह तक जाने की कोशिश की जा रही है कि ये गिद्ध इस इलाके में कहां से आया. एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया, 'ये गिद्ध यहां एक सप्ताह से था. हमने इसे पकड़ने की कोशिश की थी लेकिन सफल नहीं हुए. अंत में जब यह नीचे आया तो हमने इसे पकड़ लिया.' 

उन्होंने कहा कि इसे पकड़ने के बाद वन विभाग को इसकी सूचना दी गई और गिद्ध को उनके हवाले कर दिया गया. चिड़ियाघर में इस गिद्ध हर एक गतिविधि पर नजर रखी जा रही है. ये भी बताया गया कि कानपुर में ऐसा ये एक गिद्ध नहीं है, बल्कि इनका जोड़ा था. लेकिन एक गिद्ध उड़ गया और एक लोगों की पकड़ में आ गया.

ग्रिफॉन गिद्ध तिब्बती पठार के हिमालय वाले हिस्से में पाया जाते हैं

हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध ज्यादातर तिब्बती पठार के हिमालय वाले हिस्से में पाया जाता है. भारत में गिद्धों की 9 में से 4 प्रजातियां संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' श्रेणी में आती हैं. गिद्धों को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) की अनुसूची-I में भी रखा गया है जो देश में वन्यजीवों के लिए सुरक्षा की सर्वोच्च श्रेणी है.

पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की आबादी कम हो गई थी. नेशनल ज्योग्राफिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक के बाद से गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है, जो पशु चिकित्सा विरोधी दवा, डाइक्लोफेनाक के उपयोग के कारण हुई है. ये दवा, गायों के शवों को खाने वाले गिद्धों की मौत का कारण बनती है.


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