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अमेरिकन कंपनी फाइजर की Covid-19 वैक्सीन तैयार, आप तक पहुंचने में लगेगा इतना समय!

कोरोना वायरस को हराने के लिए Pfizer की वैक्सीन कब तक लोगों के बीच आएगी? क्या भारत के लोग इसका इस्तेमाल कर सकेंगे? जानिए हर सवाल का जवाब यहां।

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By Deepakshi | खबरें - 19 November 2020

कोरोना काल के घातक और भयानक माहौल में भी एक उम्मीद की किरण कहीं न कहीं देखने को मिली है। दरअसल इस महामारी को हराने के लिए वैक्सीन की खोज में इस वक्त मेहनत कर रही फार्मा कंपनी Pfizer को बेहद ही शानदार परिणाम मिला है। पहले ये बताया गया था कि 90 प्रतिशित तक वैक्सीन असरदार थी लेकिन अब कहा जा रहा है कि जो वैक्सीन उसने बनाई है वो 95 प्रतिशत असर करने वाली है। जर्मन दवा निर्माता कंपनी बायोएनटेक एसई के साथ साझेदारी में कोवि़ड -19 वैक्सीन बनने वाली कंपनी ने कहा कि वैक्सीन से संबंधित कोई गंभीर सुरक्षा से संबंधित चिंता नहीं है। एक कोविड -19 वैक्सीन के प्रारंभिक शुरुआत के लिए Pfizer के परिणाम काफी सकारात्मक हैं। लेकिन ऐसे अन्य पहलू भी हैं जो हमारा धैर्य बनाए रखेंगे।

अमेरिका में ऑथराइजेशन प्रक्रिया को कम से कम दो महीने के ट्रायल के सुरक्षा डेटा की आवश्यकता होती है। Pfizer का वैक्सीन उम्मीदवार के  उस स्टेज तक पहुंच गया है, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों से प्रारंभिक स्वीकृति प्राप्त करने की गारंटी नहीं है। हर एक वैक्सीन को पांच स्टेज से गुजरना पड़ता है, इससे पहले कि कोई आम व्यक्ति इसका इस्तेमाल कर सके जोकि कुछ इस तरह से हैं-

प्रीक्लिनिकल परीक्षण ट्रायल स्टेज

इसके अंदर दो से चार साल का वक्त लगता है। लेकिन कोरोना की हालत में ये काफी ज्यादा अब तेज से हो रही है। इसमें एक प्राकृतिक या सिंथेटिक एंटीजन को खोजने के लिए डिज़ाइन की गई खोजपूर्ण स्टडी और गहरी रिसर्च शामिल होती है।

क्लिनिकल ट्रायल फेज 1 और फेज 2

इन दो फेज को एक साथ या अलग-अलग चलाया जा सकता है। वे यह देखने के लिए ये आयोजित किए जाते हैं कि वैक्सीन उम्मीदवार के लिए सुरक्षित है या नहीं और सही खुराक तय करने के लिए भी ये होता है।  यदि ये फेज सफल होते हैं, तो एक बड़ा क्लिनिकल ट्रायल किया जाता है।

ट्रायल का फेज 3

यह ट्रायल का आखिरी फेज है जिसमें यह तय किया जाता है कि वैक्सीन उम्मीदवार पर कितना प्रभावी है। Pfizer की वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के इस चरण के तहत है। इसका सेम्पल साइज बड़ा है, जिसमें आमतौर पर हजारों लोग शामिल होते हैं।

रेगुलेटरी रिव्यू 

इसकी बारी कई सारे ट्रायल करने के कई स्टेज और फेज में सफलता हासिल करने के बाद आती है। मैन्चुफैक्चरिंग प्रक्रिया में जाने से पहले वैक्सीन का रेगुलेटरी रिव्यू होता है। इसमें समय लग जाता है, लेकिन कोरोना जैसी भयानक स्थित में इसका समय कम हो सकता है।

मैन्युफैक्चरिंग और क्वालिटी कंट्रोल होना

इसके लिए वैक्सीन का जो कंपनी उत्पादन करने वाली है उसके अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय संबंधित संसाधन की जरूरत पड़ता हौ ताकि वैक्सीन का निर्माण की प्रक्रिया बड़े स्तर पर शुरु हो सकें। फाइजर ने अधिकारियों से इस लाइसेंस के लिए अमेरिका में FDA में आवेदन करने की बात की है।

क्या भारत को मिलेगी कोविड की वैक्सीन?

Pfizer या किसी अन्य डेवलपर के कोविड -19 वैक्सीन उम्मीदवार के अराइवल के लिए एक तय समयसीमा की भविष्यवाणी अभी से ही नहीं की जा सकती है। भले ही Pfizer के कोविड -19 वैक्सीन उम्मीदवारों को अमेरिका में आपातकालीन ऑथराइजेशन मिल जाता है, लेकिन अमेरिका के लोगों को इसे प्राप्त करने में कुछ महीने लगेंगे।

भारत में एक और परेशानी है तकनीकी क्षमता को शामिल करना। Pfizer के टीके को माइनस 70 डिग्री सेल्सियस पर स्टोरेज की आवश्यकता होती है। ऐसी आवश्यकताओं के लिए भारत में बहुत अधिक स्टोरेज की क्षमता नहीं है। नीती आयोग सदस्य जोकि कोविड -19 पर नेशनल टास्क फोर्स के प्रमुख है वीके पॉल का कहना है कि यदि सरकार नियामक अनुमोदन प्राप्त करती है तो फाइजर के कोविड -19 वैक्सीन की खरीद और बांटने की संभावना देख रही है, लेकिन यह साफ है कि वहां भारत की जनसंख्या के आकार के लिए आवश्यक वैक्सीन की पर्याप्त मात्रा नहीं हो सकती है। 

इसके अलावा Pfizer  ने भारत में इसके टीके के लिए मानव परीक्षण नहीं किया है। भारत का ध्यान मुख्य रूप से पांच बाकी कोविड -19 वैक्सीन उम्मीदवारों पर है। इनका परीक्षण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, भारत बायोटेक, ज़ाइडस कैडिला, डॉ रेड्डीज लैब और बायोडाटा ई द्वारा किया जा रहा है।

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