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इस साल होली 29 मार्च को है। ऐसे में दुकानों पर इसको लेकर तैयारीयां भी शुरु हो चुकी हैं। सभी इस दिन का इंतजार कर रहे हैं कि कब ये त्योहार आए और एक बार फिर से अपनों के संग वक्त बिताने का मौका मिले। लेकिन इस बार कोरोना काल के चलते इस त्योहार को मनाने में थोड़ी तो सावधानी रखनी ही होगी। लेकिन क्या आपको पता है कि देश के कई हिस्से ऐसे हैं जहां होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। जी हां, आपने सही पढ़ा है। यहां हम आपको उन जगहों से कराते हैं रूबरू।
मुन्नार - दक्षिण भारत के कई ऐसे शहर हैं जहां होली नहीं मनाई जाती है। ऐसा ही एक शहर की हम यहां बात करते हैं, जिसका नाम है मुन्नार। जहां लोग ज्यादा रंग-गुलाल से नहीं खेलते हैं। यहां पर शायद ही कोई किसी को रंग लगाकर खेलता हो। यहां के लोग होली का त्योहार नहीं मनाते हैं।
रूद्रप्रयाग- आपको ये जानकार हैरानी होगी कि उत्तराखंड के क्वीली, कुरझण और जौंदली गांव में करीब 150 सालों से होली मनाई जाती है। रूद्रप्रयाग जिले में यह गांव आते हैं। यहां के लोग होली का त्याहोर सेलिब्रेट नहीं करते हैं। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि इस गांव की इष्टदेवी है मां त्रिपुर सुंदरी देवी। ऐसा माना जाता है कि मां को हुड़दंग पसंद नहीं है। ऐसे में होली पर तो मस्ती होती है तो लोगों ने होली खेलनी बंद कर दी है।
महाबलीपुरम- तमिलनाडू के महाबलीपुरम शहर अपने मंदिरों के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। लेकिन यहां के लोग होली नहीं खेलते हैं। होली का दिन आम दिन की तरह ही रहता है। होली पर कोई भीड़भाड़ तक देखने को नहीं मिलती है। न ही किसी भी तरह से रंग-गुलाल उड़ाए जाते हैं।
बुंदेलखंड- बुंदेलखंड के सागर जिले में एक गांव है जिसका नाम हथखोड़ है जहां होली नहीं खेली जाती है। इतना ही नहीं गांव के लोग होलिका दहन भी नहीं करते हैं। इस गांव के रहने वाले रमेश सिंह ने ये तक बताया है कि सालों पहले देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने के लिए कहा था। तभी से ही ये परंपरा चलती नजर आ रही है।
डहुआ गांव- एमपी के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के डहुआ गांव में करीब 125 साल से होली मनाने पर प्रतिबंध है। 125 साल पहले इस गांव में होली के त्योहार वाले दिन गांव के प्रधान की बावड़ी में डूबने के चलते मौत हो गई थी। इस मौत के चलते गांव वाले काफी ज्यादा दुखी हुए और उनके मन में भय बैठ गया था जिसके चलते लोगों ने होली न मनाने का फैसला कर लिया।
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