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नरक चतुर्दशी दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाई जाती है. नरक चतुर्दशी का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण, हनुमान जी, यमराज और मां काली की पूजा की जाती है. इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं. कई जगहों पर इसे नरका चौदस या नरका चतुर्दशी या नरका पूजा के नाम से भी जाना जाता है. इसके साथ ही इस दिन रूप चौदस और काली चौदस जैसे कई त्योहारों का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष 3 नवंबर 2021 को नरक चतुर्दशी का पर्व माना जाएगा.
नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है?
प्राचीन काल में राक्षस नरकासुर ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषियों को बंदी बना लिया था. साथ ही 16 हजार 100 खूबसूरत राजकुमारियों को भी बंधक बना लिया. नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं और ऋषियों ने भगवान कृष्ण की शरण ली. नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप मिला था, इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया. इस दौरान नरकासुर की कैद से 16 हजार 100 कन्याओं को मुक्त कराया गया.
जिसके बाद इन लड़कियों ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा इसलिए भगवान को स्वयं कुछ उपाय करने चाहिए. इन कन्याओं को समाज में सम्मान दिलाने के लिए श्रीकृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से इन सभी कन्याओं का विवाह किया. बाद में वे सभी भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार 100 पटरानी के रूप में जाने गए. नरकासुर से छुटकारा मिलने की खुशी में देवगन और पृथ्वी के लोग बहुत खुश हुए और उन्होंने इस त्योहार को मनाया. माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई.इस दिन श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन नरक के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए कूड़े के ढेर पर दीपक जलाया जाता है.
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